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________________ में हस्तामलक बत झलकते थे । भगवान ने शिष्यानुग्रह करने वाला अपना पावन बिहार समस्त प्रार्य क्षेत्र में किया । सर्वत्र धर्मान्दु वृष्टि कर भव्यांकुरों का अभिसिंचन कर सन्मार्ग प्रदर्शित किया। योग निरोध - महान् योगियों की समस्त कियाएँ महान् ही होती हैं। वे अपने में लीन रहते हैं। वस्तुत: वे अपने ही प्रात्म कल्याण की दृष्टि रखते हैं। इस साधना के माध्यम से अन्य भव्यात्मात्रों का उनके निमित्त मात्र से परम कल्याण हो जाता है। अतः आयु का एक माह शेष रहने पर वे परम् वीतरागी भगवान योग निरोध कर परम पावन शैलेन्द्र श्री सम्मेदगिरि की समुन्नत प्रभास कूट पर प्रा विराजे । इस समय भी एक हजार केवली भी साथ में विद्यमान थे । प्रतिमायोग से निश्चल पद्मासन से ध्यान निमग्न हो गये । मोक्ष कल्याणक पल-पल कर वर्षों व्यतीत हो जाते हैं। फिर भला एक मास का क्या मुल्य ? पलक मारते जैसा समय पूरा हो गया । प्रभु ने शुक्लध्यान का अन्तिम चरण संभाला-म्यूपरत किया निवृत्ति ध्यान द्वारा दुष्ट-साल्ट अधातिया-चारों कर्मों को ध्वस्त किया। फाल्गुण शुक्ला सप्तमी के दिन विशाखा नक्षत्र में, सूर्योदय के समय अधातिया चतुष्क का भी नाश कर परम पद-मुक्ति पद प्राप्त किया । आपके साथ ही १००० अन्य केवलियों ने भी अमरत्व-मोक्ष प्राप्त किया। तदनन्तर पुण्यवान कल्पवासी उत्तम देवों ने (इन्द्रादिकों ने) उसी समय पाकर उस प्रभासङ्कट पर प्रभु का मोक्ष कल्याणक महा महोत्सव मनाया । अग्निकुमार देवों ने अपने किरीटों से उत्पन्न अग्नि द्वारा अन्तिम संस्कार किया। परम पवित्र भस्म को मस्तक पर चढ़ाया है अत्यन्तानन्द के साथ चतुणिकाय देव अपने-अपने स्थान को गये । इसके बाद समस्त · भक्त जन श्रावक श्राविकाओं ने प्रष्ट द्रव्य से पूजा कर, लाडू चढ़ाकर तीन प्रदक्षिणा दे गुणस्तवन किया, अपने कर्मों को विशेष निर्जरा की। इस प्रभास कुट के दर्शन मात्र से ३२ कोटि उपवासों का फल प्राप्त होता है । अनेकों असाध्य रोगों का शमन होता है। इस टोंक
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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