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आयु का एक माह शेष रहने पर आपने देशना निरोध किया. अर्थात् उपदेश बन्द किया ।
शिव गमन -मोक्ष कल्याणक
एक मास का योग निरोध कर भगवान परम पवित्र श्री सम्मेदाचल के "अविचल कूट" पर जा विराजे । प्रतिमा योग धारण कर अन्तिम शुक्ल ध्यान के द्वारा शेष ४ अघातिया कर्मों को सर्वथा ग्रात्मा से पृथक कर परम शुद्ध दशा प्राप्त की । पञ्च लघु स्वर उच्चारण काल पर्यन्त ठहर कर चैत्र सुदी एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में सायंकाल मुक्ति धाम पधारे। उसी समय इन्द्रासन कम्पन से मोक्षगमन ज्ञात कर देव देवियों सहित आया और प्रभु सुमतिजिन का मोक्षकल्याक महोत्सव विधिवत् मनाया | अग्नि कुमार जाति के देवों के मुकुटों से उत्पन्न ग्रतल से दाह संस्कार किया, दीप जलाये, श्रष्टप्रकारी पूजा की । तदन्तर श्रावक श्राविकाओं ने भी प्रगाढ भक्ति प्रदर्शित करते हुए महोत्सव मनाया। निर्वाण लाडू चढाया पूजा की अनेकों दीपों से आरती की एवं नाना स्तोत्रों से प्रभु का गुणानुवाद किया 1
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श्री सुमति तीर्थकर गर्भावतरण समय "सद्योजात" जन्मभिषेक के समय "वाम" ( सुन्दर ), दोक्षा कल्यारंग के समय "अघोर" केवलीत्पत्ति काल में "ईशान" और मुक्ति लाभ समय में "सत्पुरुष या तत्पुरुष: कहलाये थे । प्रर्थात् उपर्युक्त नाम विशेषों से प्रख्यात हुए थे । वे प्रभु हमें सद्बुद्धि और शान्ति के प्रदायक हो ।
चिह्न
।। जय श्री सुमतिदेव स्वामी ||
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