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________________ ५० पञ्चत्रिंशत्यदा' जङ्घातिथ्यंशैरुद्गमो भवेत् । वसुभिर्भरणी कार्या दिग्भागेश्व' शिरावटी ॥२२॥ अशो कपोतालि-द्विसार्द्ध मन्तरालकम् । air त्रयोदशांशोचं दशमागैर्विनिर्गमः ||२३|| इति भण्डोवरः । पीठ के ऊपर से छज्जा के अंत भाग तक पूर्वोक्त प्रासाद के उदय का जो मान आया हो, उसका एक सौ चालीस (१४४) भाग करें। उनमें से पांच भाग का खुरा, बोस भाग का कुम्भा, माठ भाग का कलश ढाई भाग का अंतराल, आठ भाग का केवाल, नव भाग की मंत्री पैतीस भाग की जंघा, पंद्रह भाग का उद्गम ( उर्जा ), आठ भाग को भरणी, दस भाग की शिरावटी, प्राठ भाग को कपोतिका (केवाल). ढाई भाग का अंतराल और तेरह भाग का छज्जा का उदय रक्खें और छज्जा का निम दस भाग का रखें ||२० से २४॥ इन १४४ भाग के मंडोवर के घरों में जो रूर किया जाता है, उसका वर्णन अपराजित पृच्छा सूत्र १२२ के अनुसार ज्ञानप्रकाश दोपार्णव के पांचवें अध्याय में लिखा है कि खुरक: पवभागस्तु विशतिः कुम्भकस्तथा । पूर्वमध्यापरे मागे ब्रह्मविष्णुरुद्रादयः ॥ त्रिसन्ध्या भने शोभादया चित्रपfरकरेताः । नासके रूपसंघाटा गर्भे च रथिकोतमा || मृणालपत्र' शोभा स्तम्भका तोरणान्विता ।" प्रासाद मण्डने पीठ के ऊपर खुरा पांच भाग और कुम्भा बीस भाग रक्वें । कुम्भा में ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का स्वरूप बनायें, इन तीन देवों में से एक मध्य में और उसके दोनों बगल में एक २ देव बनावें । भद्र के कुम्मा में तीन संध्या देवी, अपने परिवार के साथ बनायें, को के कुम्भ में अनेक प्रकार के रूप बनायें, तथा भद्र के मध्यगर्भ में सुन्दर रथिका ( गवाक्ष) बनायें । कमल के पान के आकार और तोरण वाले स्तंभ बनावें । "eart aभागस्तु सार्धद्रो चान्तःपत्रकम् || वसुभिश्व कपोतालि-मंचिका नवभागिका । पति च जङ्घा कार्या विषक्षण ! ॥ अनवरत: स्तम्भैनसकोपाकाननाः । मनाससर्वेषु स्तम्भाः स्युश्चतुरस्रकाः ॥ गजैः सिंहेर्बरालेश्च मकरे: समलङ्कृता: " (१) 'शिला' । (२) शिरापटी शोशिका ।'
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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