SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयोऽध्याय भिट्ट जाइयकुंभ कार्यक्रः ७ ग्रामपट्टी हस्तादिपञ्चपर्यन्तं विस्तारेणोदयः समः | मानवसप्तेषु रामचन्द्राङ्गुलाधिकः ॥१५॥ पञ्चादिदशपर्यन्तं त्रिंशद्यावच्छताद्धकम् । हस्ते हस्ते क्रमाद् वृद्धि-नुसूर्य नवाझुला ||१६|| स ४७ = has 1 bath, the जाकुंकुंम कामद पीठ पीठ प्रासाद और भवन (गृह) श्रादि सब में पोठका आधार हैं, यदि पीठ न होवे तो ये निराधार माने जाते हैं। इसलिये बिना पीठ वाले ये प्रासाद और गृह आदि थोड़े समय में ही नष्ट हो जाते हैं ||१४|| प्रासाद का उदयमान ( मंडोवर ) - 栏 एक से पांच हाथ तक के विस्तार वाले प्रासाद का उदय विस्तार के बराबर मान का बवावें, परन्तु उनमें क्रमश: नव, सात, पांथ, तीन और एक अंगुल बढ़ा करके बनावें । श्रर्थात् प्रसाद का विस्तार एक हाथ का हो तो उसका उदय एक हाथ और नव अंगुल (कुल ३३ मंगुल ), दो हाथ का हो तो दो हाथ और सात अंगुल ( कुल ५५ अंगुल ), तीन हाथ का हो तो तीन हाथ और पांच अंगुल ( कुल ७७ मंगुल ), चार हाथ का हो तो चार हाथ और तीन अंगुल ( कुल ६६ मंगुल) और पांच हाथ का हो तो पांच हाय श्रौर एक अंगुल ( कुल १२१ अंगुल ) का उदय रक्खें। छह से दस हाथ तक के विस्तार वासे प्रासाद का उदय प्रत्येक हाय चौदह २ मंगुल, ग्यारह से तीस हाथ तक के विस्तार वाले प्रासाद वा उदय प्रत्येक हाथ 2
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy