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________________ MesiAwaision- III Mitali r तृतीयोऽध्याय ....... . . .. ... ..... प्रत्येक हाथ एक २ अंगुल बढ़ा करके पीठ का उदय रखना चाहिये । यह पीठ की ऊंचाई का मध्यम मान माना गया है। इसमें इसका पांचवां भाग बढाथे तो ज्येष्ठमान पोर घटा तो . कनिष्ठ मान होता है । ज्येष्ठ मान का पांचवां भाग ज्येष्ठ में बढ़ा तो ज्येष्ठ ज्येष्ठ, घटावे तो ज्येष्ठ कनिष्ठ, मध्यम का पांचवां भाग मध्यम में बढ़ायें तो ज्येष्ठ मध्यम घटायें तो कनिष्ठ मध्यम, कनिष्ठ मान का पांचवां भाग कनिष्ध में बढावे तो ज्येष्ठ कनिष्ठ और घटायें तो कनिष्ठ कनिष्ठ, इस प्रकार पीठ के उदय का नव भेद होते हैं। इन नघ भेदों के नाम बतलाते हैं "शुभदं सर्वतोभई पयक व वसुन्धरम् ।. सिंहपीठं तथा व्योम गरडं हंसमेव च ।। वृषमं यद्भवेत् पीठ मेरोराधारकारणम् । पीठमानमिति म्यातं प्रासाने प्रादिसोमया ।। सूत्रः १२३ शुमद, सर्वतोभद्र, पनक, वसुन्धर, सिंहपीठ, व्योम.,गरुड, हंस और वृषभ ये ना नाम पीठोदय के हैं। इनमें वृषभपीठ मेस्त्रासाद का प्राधार रूप है । दि० वसुनंवीकृत प्रतिष्ठाशार में पीठ का मान"प्रासादविस्तरार्द्धन स्वोच्छितं पीठमुत्तमम् । मध्यमं पादहीनं स्याद् उत्तमान कन्यसम् ।।" प्रासाद के विस्तार के अद्धमान का पीठ का उदय रक्खें। इसे उत्तम मान को पीठ माना है । इस उत्तम मान की पीठ के उदय का चार भाग करके उनमें से तीन भाग के मान का पीठ का उदय रक्खें तो मध्यम मान को और दो भाग के मान का पीठ का SHAMI888158080 उदय रवखें तो कनिष्ठ मान को पोठ माना है। पीठोदय का परमानत्रिपञ्चाशत् समुत्सेधे द्वाविंशत्यशनिर्गमे ॥७॥ नवांशो जाइयकुम्भश्च सप्तांशा'कर्णिका भवेत् । सान्तरालं कपोतालिः सप्तशा ग्रासपट्टिका |८|| सूप दिग्व सुभागैश्च गजवाजिनरा क्रमात् । वाजिस्थानेऽथवा कार्य स्वस्वदेवस्य वाहनम् ||६|| पीठ का जो उदयमान पाया हो, उसमें ५३ भाग करें। उनमें मे बाईस भाग के मान का पीठ प्रासाप की महापीठ (१) सप्तार्श (२) । EHRAM PEL सपना Pusta Stle MoANAMRATRENT - - -
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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