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________________ ... ." कितनेकानिक शिल्पी जगती पीठका वास्तविक स्वरूप को जानते हैं, ऐसा प्रतीत नहीं होता, क्योंकि पागल जो मवीन प्रासाद प्रभवा महाप्रासाद बनते हैं, उनमें जगती पीठ का प्रभाव ही मालुम होता है। ऐसा लियाम प्रसाद को शास्त्रकार उदयकारक नहीं मानते हैं। शिव स्नानबल-- शिवजी के नाम का जल इशिगोचर होने से एवं उसका उल्लंघन करने से दोष लगता है, ऐसा समासम पग्लिाम है। जिसे शिवलिंग की पीठिका की नाली के नीचे बंडनाथ गणको स्थापना की जाती है । तब स्वासजल बंडगरा के मुख में जाकर वापस गिरता है, उसको उच्छिष्ट (जूला) मान लिया जाता है। ऐसा शिवस्माम जस का लांघन होजाय तो दोष नहीं माना जाता । पंचनाथ गण की स्थापना की प्रथा मुझे किसी शिवालय में देखने नहीं मिली यह वास्तु कार का प्रचार न होना समझना चाहिये। नाभिवेष--- एक धेन के सामने दूसरे देव स्थापित किया जाय अपवा एक देवालय के सामने दूसरा देवालय जनवाया था तो उसको शास्त्रकार माभिवेध होना मानते हैं, यह अशुभ है, परंतु स्वजातीय देव मापस में सम्मुख हो तो मानिदेष का दोष नहीं माना जाता। माभिवेध के निषेध का कारण यह हो सकता है कि-एक देव का दर्शन करते हुए दर्शक की पीस दूसरे देश के सामने रहती है । दूसरा कारह यह भी है कि...देव की दृष्टि का अबरोध होना दीषित माना है। ....... तीसरे प्रध्याय में रशिया, मिट्ट, पीठ, मंडोवर (दीवार), देहली, द्वारमान, सपा नि, पंथ, सप्त और नवशाला मादिका पर्शन है। माधुनिक कितनेक शिल्पी देवालय की पीड छोटी रखते हैं, जिसे देवालय दबा हुआ मालूम होता है भौर पीठ मान से न्यून होने से वाहन का विनाश होना शास्त्रकार लिखते हैं, पीठ न्यून रखने के विषय में बीपार्शवभको सम्पादकीय टीप्पनी पेज नं. ५३ मैं 'शास्त्रीयमान जो माया हो उसमें से भी फिर प्रभाग के मान का पीठ मनाना लिखा है।' यह सदन प्रशास्त्रीय मनः कल्पित है। मेलमंटरोवर-- प्रासाद की दीवार में दो अंधा के ऊपर एक छज्जा होये, उसको 'मेरुमंडोवर' कहा जाता है। क्षीराम ग्रंथकार लिखते हैं कि-मेरुमंडोवर को बारह अंधा और छह छम्मा बनाया जाता है, इस हिसान से दो दो अंधा के ऊपर एक एक कुश्मा रखा जाता है। प्रस्तुत ग्रंथ में प्रबम माल में दो अंधा मोर एक अजा, तना दूसरे मास में एक बघा और एक खुला बनाना लिखा है । इसी प्रकार पाबू के और राणकपुर के जिनालयों में देखा जाता है । अपपुर प्रान्तीय भामेर में जगत् शिरोमणि के मंदिर में प्रत्येक अंधा के ऊपर छम्जा रखा गया है । दीपार्णव में प्रशंषीन देवालयों के तीन बार कोद्र में पीठ और 'रमा रहित लिखा है, यह नजर एक से लिखा मालूम होता है । पीठ तो सबको है, और अपना का निर्गम नहीं होने से धम्मा होम मासूम होता है।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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