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________________ ३० मण्डप प्रतोय सोपानं शुण्डिकाकृतिम् । तोरणं कारयेत् तस्य पदपदानुसारतः ||१६|| मण्डप के आगे और प्रतोली पोल ) के धागे सीढियां बनावें, इसके दोनों तरफ हाथी की प्राकृति रखें। प्रत्येक पद के अनुसार तोरण बनायें ||१६|| तोरणस्योभयस्तम्भ - विस्तरं गर्भमानतः । भित्तिगमप्रमाणेन सममानेन वा भवेत् ||१७|| सोर के दोनों स्तंभ के मध्य का विस्तार प्रासाद के गर्भगृह के मान से, अथवा दीवार के गर्भमान से, प्रथवा प्रासाद के मान से रखा जाता है ||१७|| वेदिका पीठरूपा च शोभाभिर्बहुभिषुता । विचित्र तोरणं कुर्याद् दोला देवस्य तत्र च ॥ १८ ॥ प्रासादमण्डने यह जगतीरूप वेदिका प्रासाद की पीरूप है, इसलिये इसे अनेक प्रकार के रूपों तथा तोरणों से शोभायमान बनाना चाहिये । तोरणों के फूलों में देवों की प्राकृतियां बनायें ||१८|| देवके वाहन का स्थान प्रासादाद्वाहनस्थाने करणीया चतुष्किका | एकद्वित्रिचतुः पञ्च रससप्तपदान्तरे ॥१६॥ देवों के वाहन रहने के स्थान पर चीकी बनावें । यह चौको प्रासाद से एक, दो, तीन, चार, पांच, छह अथवा साल पद जितनी दूर बनायें ||१६|| देवके वाहन का उदय या नवांशे तु षट्सप्त मानिकः । झनामिस्वनान्तं वा त्रिविधो वाहनोंदयः ||२०|| मूस के उदय का नव भाग करें। उनमें से पांच छह अथवा सात भाग के मान का बाहन का उदय रखें। प्रथवा गुह्य, नाभि यह स्तन पर्यन्त वाहन का उदय एक्सें मे तीन २ प्रकार के वाहन का उदय कहा गया है ||२०| (१) 'त्रिविधं कुर्यात् (२) 'पट्ट' पट्टानुसारतः' (1) 'लयोमध्येऽयथा ममेद' (४) 'मानवमा '
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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