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________________ . ... प्रासादमहलने :.. अपराजितपृच्छा सू० ११५ में भी कहा है कि "प्रासादपृथुमानेन द्वि (त्रि ? ) गुणा चोत्तमा तया । मध्यमा चतुर्गणा याघमा एञ्चगुणोच्यते ॥" प्रासाद के विस्तार से दुगुनी हो तो उत्तम, चार गुनी हो तो मध्यम और पांच गुनी हो तो कनिष्ठ मान की अगती कही जाती है। कनिष्ठे' ज्येष्ठा कनिष्ठा ज्येष्ठे मध्ये च मध्यमा। प्रासादे जगती कार्या स्वरूपा लक्षणाधिता ॥४|| कनिष्ठ मान के प्रासाद में ज्येष्ठमान को जमती, मध्यम माम के प्रासाद में मध्यम मान को, और ज्येष्ठमान के प्रासाद में कनिष्ठ मान को जगती प्रासाद के स्वरूप के लक्षण वाली बनानी । अर्थात् जिस प्रकार का प्रासाद हो, उसी प्रकार की जगती बनानी चाहिये ॥४॥ अपराजितपच्छा में भी लिखा है कि "उवा कनिष्टप्रासादे मध्यमे मध्यमा तथा । ज्येष्ठे कनिष्ठा व्याख्याता जगतो मानसंख्यया ॥" सूत्र० ११५ कनिष्ठमान के प्रासाद में ज्येष्ठमान की, मध्यममान के प्रासाद में मध्यममान को और हमाम के प्रासाद में कनिष्ठ मान को जगती रखनी चाहिये। रससप्तगुणाख्याता जिने पर्यायसंस्थिते । " द्वारिकायां च कर्तव्या तथैव पुरुषत्रये ।।शा चकल्याणक (च्यवन, जन्म, दीक्षा, शान और मोक्ष ) वाले अथवा देवकुलिका वाले दिन प्रासाद में, द्वारिका प्रासाद में और त्रिपुरुष (ब्रह्मा, विष्णु और शिक्षक के प्रासाद में बहाली अथवा सास गुणी जगती रखनी चाहिये ।। मण्डप को जगती मण्डपानुक्रमेणैव सपादांशेन साधतः । ..... द्विगुणा वायता कार्या सहस्रायतने विधिः ॥६॥ ___ मंडप के अनुक्रम से सतायो, डेढ़ी अथवा दुगुनी लंबी अगती करनी चाहिये । हजारों प्रासादों में यही विधि है ॥६॥ (१) कन्यसे कन्यमा ज्येष्ठा", मुद्रित पुस्तकद्वये । (२) 'स्वहस्तायतने' । १
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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