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________________ ५. २४ मं का एक मध्यम हाम और छह यवोदर का एक अंगुल ऐसे २४ अंगुल का एक afrष्ठ हाथ माना जाता है। इन तीन प्रकार के हाथों में से गांव नगर वन, बगीचा, किला, कोस, योजन ग्रादिका नाप मान के हाथ से 'प्रासाद ( राजमहल और देव मंदिर ), प्रतिमा, लिंग, जगतीपीठ मंडप और सब प्रकार के मनुष्यों के घर ये सब मध्यम मान के हाथ से और सिंहासन, शय्या, दर्शन, छत्र, शस्त्र घर सब प्रकार के वाहन भादि का नाम कनिष्ठमान के हाथ से नापने का विधान है । हाथ की बनावट हाब में सीम तीन मंडल की एक २ पर्व रेखा माना है, उसके स्थान पर एक २ पुष्प की प्राकृति किया जाता है। ऐसे पाठ पर्व रेखा होती है। दीयो पर्व रेखा हाथ का मध्य भाग समझा जाता है, इस मध्य भाग से मागे पांव चंल का दो भाग तीनका भर र भाग किया जाता है । ८. ". हाथ के प्रत्येक अंगुल के कापा का एक २ देव है, जिसे २४ अंल के २३ काय होते हैं, इनके देवों के नाम राजवल्लभमंडन प्र० १ श्लो० ३६ में लिखा है । परन्तु पर्व रेखा के पुष्प का याय और एक आदि ऐसे नव देव मुख्य माने हैं ext -३० fire हुताशो ब्रह्मा कालस्तोयपः सोमविष्णु " हाथ के तीसरे भाग का देव रुद्र, प्रथम पुष्प का देव बायु, दूसरे पुष्प का देव विश्वकर्मा, पुष्प का दिन बोथे पुष्प का देव ब्रह्मा पांच पुष्प का देव यम, घट्ट पुष्प का देव वरुण, सातवे पुष्प का देव सोम और आठवें पुष्पा देव विष्णु है। इन नव देवों में से कोई भी देव हाथ उठाते समय शिल्पी के हाथ से दब जाय तो अशुभ फलदायक माना है। इसलिये विस्पयों को हाथ के दो फूलों के बीच से उठना चाहिये। इसका फल समरांगण सूत्रधार में लिखा है कि हाथ (ज) को रुद और वायु देव के मध्य भाग से उठायें तो धन की प्राप्ति और कार्य की fafa होवे । वायु और विश्वकर्मा देव के मध्य भाग से उठावें तो इच्छित फल की प्राप्ति होवे । Freea और अग्निदेव के मध्य भाग से उठावें तो काम की तरह पूर्ण होवे । अऔर के मध्य भाग से उठायें तो पुत्र की प्राप्ति मौर कार्य की सिद्धि होवे । ब्रह्मा और यमदेव के मध्य भाग से उठाती की हानि होवे | यम पौर वरुण देव के मध्य भाग से उठावें तो मध्यम फलदायक जानना । वरुण पौर सोमदेन के मध्य भाग से उठा तो मध्यम फल जानना । सोध और विष्णु देव के मध्य भाग में उठावें सो ude प्रकार की सुख समृद्धि होने १ समरांगण सूत्रधार ग्रंथ में ज्येष्ठ हाथ से नापने का लीखा है। २ देखो राजमंडन प्रध्याय १ लोक ३३ से ३६ तक
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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