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________________ प्रासादमण्डने ग्रंश लाने का प्रकार "तन्मूले ब्यमहर्म्यनामसहिते भक्ते त्रिभिस्त्वंशका, स्यादिन्द्रो यमभूपती कमवशाद् देवे सुरेन्द्रो हितः। वेद्यामेष यमस्त पण्यभवने नागे तथा भैरवे, राजांशो गजवाजियाननगरे राहो गृहे भन्दिरे ।।" राज०म०३ मूलराशि ( क्षेत्रफल ) में व्यय की संख्या और घरके नामाक्षर को संस्था ओढ़ करके उसमें तीन से भाग दें। जो एक शेष बचे तो इन्द्रांश, दो शेष बचे तो यमांश और तोन (शून्य) शेष बचे तो राजांश जानें । इन्द्र का अंश-देवालय और बेदी में शुभ है। यमका अंश-दुकान, नागदेव और भैरव के प्रासाद में शुभ है । राजा का अंश-गशाला, अश्वशाला, वाहन, नगर, राजमहल और साधारण घर में शुभ है । दिक साधन--- रात्रौ दिक्साधनं कुर्याद् दीपसूत्रध्रु वैक्यतः । समे भूमिप्रदेशे तु शङ्क ना दिवसेऽथवा ॥२३॥ घर और देवालय आदि बराबर वास्तविक दिशा में न होने से दिष्टः मुददोष माना जाता है । इसलिये ग्रह मादि बराबर ठीक दिशा में रखने के लिये दिक् साधन करना जरूरी है। रात्रि में दिशा का साधन दोप, सूत और ध्रव से किया जाता है और दिन में दिशा का साधन समवल भूमि के ऊपर शंकु रखकर किया जाता है ॥२३॥ "प्राची मेषतुलारवेरुदयतः स्याद् वैष्णवे वह्निमे, चित्रास्वातिभमध्यमा निगदिता प्राची बुधैः पञ्चधा । प्रासादं भवनं करोति नगरं दिड मूढमर्थक्षयं, हर्षे देवगृहे पुरे च नितरामायुर्वनं दिड मुखे 1" राज०प्र०१ मेष और तुला संक्रान्ति को सूर्य का उदय पूर्व दिशा में होता है। श्रवण और कृत्तिका नक्षत्र का उदय पूर्व दिशा में होता है । चित्रा और स्वाति नक्षत्र के मध्य में पूर्व दिशा मानी जाती है । विद्वानों ने कहा है कि इस पांच प्रकार से पूर्व दिशा को जानें । प्रासाद गृह और नगर को दिङ मूढ करने से धन का नाश होता है। यदि ये वास्तविक दिशा में हो तो हमेशा प्राय और धन की वृद्धि होती है। रात्री में और दिन में दिकसाधन--- "तारे मार्कटिके ध्र वस्य समता नीतेऽवलम्बे नते, चौपारण वदेषयतश्च कथिता सूत्र व सौम्या दिशा
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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