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________________ Compoween प्रथमोऽध्यायः साठ दिक्पाल इन्द्रो वहिनः पितृपतिनतो वरुणो मरुत् । ... .. कुबेर ईशः पतयः पूर्वादीनां दिशा क्रमात् ।।१५।। इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋति, काग, वायु, कुवेर और ईश, ये पाठ देव अनुक्रम से पूर्वादि दिशायों के अधिपति हैं ॥१५॥ कार्यारम्भ के समय पूजनीय देव . दिक्पालाः क्षेत्रपालाश्च गणेशश्चण्डिका तथा । एतेषां विधिवत् पूजां कन्या कर्म समारभेत् ॥१६॥ । दिक्पाल, क्षेत्रपाल, गणेश और चण्डिका देवी प्रादि देव देवियों की विधि गर्वक पूजा करके काय प्रारंभ करें ॥१६॥....... निषध समय धनुमीनस्थित सूयें गुरौ शुक्रेऽस्तगे विधी । वृती व्यतिमाते च दग्धायां न कदाचन ॥१७॥ : धन और मीन संक्रांति का मूर्य हो, शुरु शुक और चन्द्रमा ये अस्त हो, वैधृति और ध्यतिपात के योग हो, लथा दग्धा तिथि हो, तब कभी भी नवीन कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिये ॥१७॥ वत्समुख---- कन्यादित्रिवि सूर्य द्वार पूदिपु त्यजेत् । भृपया इसमुखं ता स्वामिनो हानिकयतः ॥१८॥ कन्या आदि तीन तीन राशि पर सूर्य हो, तब अनुक्रम से पूर्व प्रादि दिशात्रों में द्वार श्रादि का कार्य नहीं करना चाहिये । क्योंकि उन दिशाओं में सृष्टिक्रम में अर्थात पूर्व, दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशा में वत्स का मुख रहता है । यह कार्य कराने वाले स्वामी को हानिकारक है । जैसे-कन्या, तुला और वृश्चिक राशि पर सूर्य हो तब वत्स का मुख पूर्व दिशा में; धन, मकर और कुभ राशि का सूर्य हो तब वत्स का मुख दक्षिण दिशा में; मीन मेप और धूप राशि का सूर्य हो तब वत्स का मुख पश्चिम दिशा में; मिथुन, कर्क और सिंह राशि का सूर्य हो तव वत्स का मुख उत्तर दिशा में रहता है । ||१|| (१) समाचरेत् (२) त्रिनिगे ... . Anim a titi turn
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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