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________________ seatstore: जिन जिन देवों ने प्रासाद के आकार वाली पूजा की, उनके नाम वाले, जो जो प्रासाद उत्पन्न हुए, उनको अनुकम से कहूँगा (१) देवों के पूजन से नागर जाति, (२) दानवों के पूजन से After, (३) गन्धर्वो के पूजन से लतिनजाति, (४) यक्षों के पूजन से विमानजाति, (2) विद्याधरों के पूजन से मिश्रजाति, (६) बसु देवों के पूजन से वराटकजाति, (७) नागदेवों के पूजन से सान्धार जाति, (८) नरेन्द्रों के पूजन से भूमिजजाति, (६) सूर्यदेवों के पूजन से विमाननागर जाति, (१०) चन्द्रमा के पूजन से विमानपुष्पक जाति, (११) पार्वती के पूजन से वलभी जाति, (१२) हरसिद्धि श्रादि देवियों के पूजन से सिंहावलोकन जाति, (१३) व्यन्तर स्थित देवों के पूजन से फांसी के आकार वाली जाति, १४ और इन्द्रलोक के देवों के पूजन से रथारूह (दारु आदि) जाति, ये चौदह जाति के प्रासाद उत्पन्न हुए। ग्राठ जाति के उत्तम प्रासाद----- " नागरा द्राविडाश्चैव भूमिजा लतिनास्तथा । सावन्धारा विमानादि-नागराः पुष्पकाङ्किताः ॥७॥ freeferen: रष्टौ जातिषु चोत्तमाः । सर्वदेवेषु कर्त्तव्याः शिवस्यापि विशेषतः ||८|| ૩ चौदह जाति के प्रासादों में (१) नागर, (२) द्राविड, (३) भूमिज, (४) लिन, (५) सायंधार (सांधार केसरी आदि), (६) विमान नागर, (७) विमान पुष्पक, श्रीर (८) शृङ्ग ओर free वाला मिश्र, ये आठ जाति के प्रासाद उत्तम हैं । इसलिये सब देवों के लिये यही बनाने चाहिये, उनमें भी विशेषकर महादेवजी के लिये बनाना श्रयस्कर है ।।७-६|| प्रासादानां च सर्वेषां जातयो देशभेदतः । चतुर्दश प्रवर्त्तन्ते ज्ञेया लोकानुसारतः ||६|| सब प्रासादों के भेद देशों के भेद के अनुसार होते हैं । इनके मुख्य चीदह वे अन्य अपराजित पृच्छा सूत्र ११२ आादि शास्त्रों से जानना चाहिये ||६|| लक्ष्यलचणतोऽभ्यासाद् गुरुमार्गानुसारतः । प्रासादभवनादीनां ३ सर्वज्ञानमवाप्यते ॥ १० ॥ प्रासाद और गृह आदि बनाने के लिये सब प्रकार का शिल्पज्ञान, उसके लक्ष्य और लक्षण के अभ्यास से एवं गुरुशिक्षा के अनुसार प्राप्त करना चाहिये ||१०॥ (१) पुष्पकालिक (२) प्रासादमाव
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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