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________________ SSma अथ जिनेन्द्रप्रासादध्यायः २०७ ४६-राजेन्द्रप्रासाद तद्रूपे च प्रकर्तव्य उत्शृङ्गाणि' पोडश । पूजनाल्लभते राज्यं स्वर्गे चैवं महीतले ॥१०६।। इति राजेन्द्रप्राताद: 11४६11 सुरेन्द्रप्रसाद के भद्रके अपर बारह के बदले कोलह उरुग चढ़ाने से राजेन्द्र नामका प्रासाद होता है। उसका पूजन करने से पृथ्वी के ऊपर और स्वर्ग में राज्य प्राप्त होता है ॥१६॥ शृगसंस्पा--भद्र १६ बाकी पूर्ववत, कुल ४८५ Qग । विभक्ति बाईसवीं । ५०-नेमेवेश्वर प्रासाद चतुरस्त्रीकृते क्षेत्र द्वाविंशपदभाजिते । बाहुरिन्दुर्युम्भरूप-द्वीन्दुभागाः क्रमेण च ।।११०।। भद्रार्ध च द्वयं भागं स्थापयेतु चतुर्दिशि । केसरी सर्वतोभद्र' कर्णे चैवं क्रमद्वयम् ॥१११।। केसरी तिलकं चैव रथोचे तु प्रकीर्तितम् । कर्णिकानन्दिकायां च शृङ्गच तिलकं न्यसेत् ।।११२॥ भद्रे चैबोरचत्वारि प्रत्यङ्गानि च षोडश । नेमेन्द्रेश्वरनामोऽयं प्रासादो नेमिबल्लभः ॥११३।। इति नेमेन्द्रश्वरप्रासादः ॥५॥ प्रासाद की समचोरस भूमिका बाईस भाग करें। उनमें दो भाग का कोरण, एक भागकी कोणी, दो भागका प्रतिकर्ण, एक भाग कोणी, दो भाग का उपरथ, एक भागको नन्दी और दो भाग का भद्रा रक्खें। कोणे के ऊपर केसरी और सर्वतोभद्र, ये दो क्रम, प्रतिकर्ण और उपरथ के ऊपर केसरो क्रम और एक तिलक, कोणी और नदियों के अपर एक शृंग और एक तिलक, भद्र के ऊपर चार २ उरु,ग, और सोलह प्रत्यंग चढ़ावें । ऐसा नेमेन्द्र श्वर नाम का प्रासाद श्री नेमिनापजिनदेव को प्रिय है ।।११० से ११३॥ mama १. 'उसपर पञ्चमम्' । पाठान्तरे ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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