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________________ tosseksibsaitiesdiseasy m mmmmmmmmmmmmmm R ampuWEAMNAMRAPARISHNAAMAYANAMTHAVINATANDE मथ जिनेन्द्रप्रासादाध्यायः मानसन्तुष्टिप्रासाद के प्ररथ के ऊपर एक २ तिलक चढ़ायें तो मनाल्याचन्द्र नामका प्रासाद होता है ॥६॥ और तिलक प्ररथे। ४५-श्रीभवप्रासाद मनोल्याचन्द्रसंस्थाने कणे न्यसेत् विकसरीम् । श्रीभवनामो विज्ञेयः कर्त्तव्यश्च त्रिभृतये ॥१०॥ इतिश्वीभवनामप्रासादः ।।४५।। मनोल्याचंद्र प्रसाद के कोरणे के ऊपर झूम के बदले में दो केसरी शृंग चड़ावे तो श्रीभवनामका प्रासाद होता है। वह त्रिमूत्ति (ब्रह्मा, विष्णु और शिव ) के लिये बनावें ॥१॥ शृंगसंख्या-कर्णे ४०, प्ररथे ४, म १२, एक शिस्तर, कुल १०१ शृंग, तिलक प्ररथे । विभक्ति इक्कीसवीं । ४६-नमिनाजिनप्रासाद---- चतुरस्रीकृते क्षेत्रे पोडशपदभाजिते । को भागत्रयं कार्यः प्रतिकणों द्विभागिकः ॥१०१।। भद्राई त्रिभाग ज्ञेयं चतुर्दिन व्यवस्थितम् । क्रमद्वयं रथे कर्णे ऊर्य तिलकशोभनम् ॥१२॥ भद्रे चैत्रोरुचत्वारि स्थापयेच्च चतुर्दिशि । नमिशृङ्गश्च नामायं प्रासादो नमिवल्लभः ।।१०३|| इति नमिजिनवल्लभप्रासादः ।।४६|| प्रासाद को समचोरस भूमिका सोलह भाग करें। उनमें तीन भाग का कोरण, दो भागका प्रतिरथ और तीन भाग का भद्राई करें। कोण और प्ररय के ऊपर केसरी और सर्वतोमद, ये दो क्रम और भद्र के उपर चारों दिशा में चार चार उस चढायें। ऐसा ममिग नामका प्रासाद श्री ममिनाथ जिनको प्रिय है ।११०१ से १०६।। अगसंख्या-कारणे ५६, प्ररथे ११२, भद्रे १६, एक शिखर, कुल १८५ शृंग । तिलवकोणे ४ प्ररथे कुल १२ तिलक।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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