SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रासादमडने श्रीवत्स केसरी चैव सर्वतोभद्रमेव च । कर्णे चैव प्रदातव्यं रथे चैवं तु तत्समम् ॥४१॥ नन्दिका कणिकायां च द्वे द्वे शृङ्गं च विन्यसेत् । भद्रे चैचोर चत्वारि प्रत्यङ्गं जिनमेव च ॥४२॥ शीतलो नाम विज्ञेयः सुश्रियं च विवर्धकः । चन्द्रप्रभस्य प्रासादो विज्ञेयश्च सुखावहः ॥४३॥ ___ इति चन्द्रप्रभवल्लभः शीतलप्रासादः ॥१२॥ प्रासाद की समचौरस भूमि का बत्तीस भाग करें। उन में से पांच भाग का कोण, पाच भाग का प्रतिकर्ण, चार भाग का भद्रार्ध, कोणो और नन्दिका एक एक भाग की रक्खें । ये सब अंम समचौरस बनावें । कोण और उपरथ के ऊपर श्रीवत्स, केसरी और सर्वतोभद्र शृंग चढ़ावें । कोणो और नन्दिका के ऊपर दो दो श्रीवत्सग, भद्र के ऊपर चार धार उरुग चढ़ावें और चौबीस प्रत्यंग चढ़ावें । ऐसा शीतल नाम का प्रासाद लक्ष्मी को बढ़ाने वाला है और चन्द्रप्रभाजन को प्रिय है और मुख कारक है ॥३१ से ४३॥ शृंगसंरूपा-कोरणे ६० प्रतिकर १२०, कोणीपर १६, मंदो पर १६, भद्र १६, प्रत्यंग २४, एक शिखर, कुल २५३. शृग । १३--श्रीचन्द्र प्रासाद-- सद्पे च प्रकर्तव्यो रथोचे तिलक न्यसेत् । श्रीचन्द्रो नाम विज्ञेयः सुरराजसुखावहः ॥४४॥ इति श्रीचन्द्रप्रसादः ॥१३|| शीतलप्रासाद के प्रतिकरण के ऊपर एक एक तिलक भी चढ़ावें तो श्री चंद्र नाम का प्रासाद होता है, यह इन्द्र को सुखकारक है ॥४४॥ नंग संख्या पूर्ववत् २५३ और तिलक र प्रतिकरों। १४-हितुराजप्रासाद-- नन्दिका कणिकायां च ऊर्ध्वं तिलकं शोभनम् । हितुराजस्तदा नाम सुविधिजिनवल्लभः ॥४५॥ इति सुविधिजिनवल्लभः हितुराजप्रासादः ॥१४॥
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy