SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ சாம்பாம் परिशिष्टे केसरीत्रासादः १बर -mm mmmm. iminatin.samaturer A H A RAR omtaaraki TI .................... mananda .. Sure - - ORN S 9 २५-मेवप्रासाद कणे शृङ्गप्रयं वैष एकोतरशताण्डकः | मेरुश्चापि समाख्यातः कसंख्यश्च त्रिमूर्तिके ॥६५॥ यह मे प्रासाद का मान और स्वरूप वृषभ प्रासाद के अनुसार जाने । विशेष यह है कि-वृषभ प्रासाद के कोणो के पर का तिलक हटा कर के उसके बदले शृंग चढ़ावे । यह एक सौ एक श्रृंग वाला मेरु प्रासाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिये बनावें ॥६५॥ शृग संख्या-कोरणे १२, प्रत्यंग ८, प्ररथे १६, रथे २४, उपरथे १६, भद्रनन्दी के ऊपर ८, भद्र १६, और एक शिखर, एवं कुल १०१ ग मेरप्रासाव को प्रदक्षिणा का फल सर्वस्प हेममेरोश्च यत्पुण्यं त्रिप्रदक्षिणः । कुते शैलेष्टकाभिश्च तत्पुण्यालभतेऽधिकम् ॥६६॥ सम्पूर्ण सुवर्णमय मेह को तीन प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, उस पुण्य से भी अधिक पुण्य पाषाण अथवा ईट के बने हुवे मेरु प्रासाद की प्रदक्षिणा करने से होता है ।।६।। हरो हिरण्यगर्भश्च हरिदिनकरस्तथा । एते देवाः स्थिता मेरौ नान्येषां स कदाचन ॥६७॥ इति श्रीसूत्रसन्तानगुणकीर्तिप्रकाशप्रयोतकारे श्रीभुवनदेवाचार्यो___ क्तापराजितपृच्छाया केसदिसान्धारप्रासादनिर्णयाधिकारी ___नामैकोनपष्टयु त्तरशततमं सत्रम् ॥ महादेव, ब्रह्मा, विष्णु और सूर्य, इन देवों को मेरु प्रासाद में प्रतिष्ठित किये जाते हैं। अन्य दूसरे देवों को कभी भी उसमें प्रतिष्ठित नहीं करना चाहिये ।।६७। इति पंडित भगवानदास जैन अनुवादित केसरी प्रादि पवीस सांधार प्रासाद निर्णयाधिकार समाप्त ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy