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________________ Plustem BREAM .................... परिशिष्टे केसरीप्रासादः .... F HERE---- NEDA----- - न्म - - - - - - EPAL - - (TRAIMILARAHMone % ७-श्रीवृक्षप्रासाद चतुर्दशांशविस्तारे गर्भश्चशिविस्तरः । भागभागं भ्रमो भित्ति-बाह्यभितिस्तु भागिका ॥२३॥ कर्णे शृङ्गद्वयं कुर्या-च्छिखरं चाष्टविस्तरम् । प्ररथः कर्णमानेन तिलकं शृङ्गकोपरि ॥२४॥ नन्दिकायां च तिलकं भद्रे शृङ्गत्रयं भवेत् । श्रीवृक्षस्तु समाख्यातः कर्त्तव्यस्तु श्रियः पतेः ॥२॥ इति श्रीवृक्षप्रासादः ॥७॥ प्रासाद को समचोरस भूमिका चौदह भाग करें। उनमें से पाठ भागका गभारा, एक भागकी दीवार, एक भागको भ्रमणी और एक भागको बाहर की दीवार, इस प्रकार भीतर का मान होता है । बाहर का मान मंदर प्रासाद के अनुसार होता है। विशेष इतना कि-दो भाग का कोशा, दो भागका प्रतिरथ, एक भागकी नंदी, और दो भाग का भद्राय रखखें। कोणेके ऊपर दो शृंग, प्रतिरथ के ऊपर एक शृंग ओर एक तिलक चढ़ायें । शिखर का विस्तार पाठ भाग का रखें । मंदीके ऊपर एक २ तिलक रक्खें । भद्रके ऊपर तीन २ उरुग चढ़ावें । ऐसा श्रीवृक्षप्रासाद का स्वरूप है, वह विष्णु के लिये बनावें ॥२३ से २५॥ मृगसंख्या-कोरणे ८, प्रतिरपे ८, भद्रे १२, एक शिखर, एवं कुल २६ शृंग । तिलक संख्या-प्रतिरथे ८ और नदीपर म एवं कुल १६ तिलक । +-अमृतोद्भवप्रासाद--- कणे भृङ्गत्रयं कुर्यात् प्ररथः पूर्वकल्पितः । अमृतोद्भवनामोऽसी प्रासादः सुरपूजितः ॥२६॥ ___ इति अमृतोद्भवप्रासादः ॥८॥ यह प्रासाद का तलमान और स्वरूप श्रीवृक्षप्रासाद के अनुसार जानें । विशेष इतना कि-कोण के ऊपर तीन शृङ्ग चढ़ावें, बाकी प्रतिरथ आदि के अपर श्रीवृक्ष प्रासाद की तरह जानें । ऐसा अमृतोद्भवप्रासाद देवा से पूजित है ॥२६।। NA
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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