SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रासापमण्डने बलाक को अर्धभुमि नृत्यमंडप के समसूत्र में रखनी चाहिये तथा मसवारण, बेक्षी, वितान और तोरणों से शोभायमान बनानी चाहिए ॥४४॥ राजद्वारे बलाणे च पञ्च वा सप्तभूमिकाः । तद्विमानं बुधैः प्रोक्तं पुष्करं वारिभध्यतः ।।४५|| राजद्वार के ऊपर जो गव अथवा सात भूमिवाला बलाणक किया जाता है, उसको विद्वान् शिल्पी विमान अथवा उत्तुंग नामका बलाणक कहते हैं। सपा जलाश्रय के बलाणक को पुष्कर नामका बलाणक कहते हैं ॥४॥ हर्यशालो गृहे वापि कलव्यो गोपुराकृतिः । एकभूम्मात्रिभूम्यन्तं गृहारद्वारमस्तके ॥४६॥ इति पंचबलाणकम् । गृहद्वार के भागे एक, दो अथवा तीन सुमिवाला ओ बलाणक किया जाय, उसका नाम हर्म्यशाल है । वह गोपुराकृति वाला बनाया जाता है । ( किले के द्वार के ऊपर जो बलाणक किया जाता है, उसको गोपुर नाम का बलातक कहते हैं)। कौन २ देव के प्रागे बलाणक करना--- "शिवसूर्यो ब्रह्मविष्णू चण्डिका जिन एव च। एतेषां च सुराणां च कुदिरे बलाणकम् ।।" पप सू० १२३ ।। शिव, सूर्य, ब्रह्म, विष्णु, चंडिका और जिन, इन देवों के प्रागे बलाणक बनाना चाहिए । संवरणा--- संबरणा प्रकर्तच्या प्रथमा पञ्चपण्टिका । चतुर्षण्टाभिवृद्धधा च पादेकोतरं शतम् ||४७।। मंडप आदि के ऊपर गुमटी के स्थान पर संघरणा को जाती है। प्रथम संबरणा पांच घंटी को है । आगे प्रत्येक संवरण की चार चार घंटो की वृद्धि से एक सौ घंटी तक बढ़ाया जाता है ।।४७॥ पञ्चविंशति रित्युक्ताः प्रथमा बसुभागिका । वेदोत्तरं शतं यावत् वेदशा द्धिरिष्यते ||४||
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy