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________________ munanaganatanevanan १३२ प्रासादमखने SwamirmwNAMEERPARATIRATRIChettri. ..... TERRORA r tinpoemsion ___ कादरिका का थर सात भाग के उदय में और सात भाग निर्गम में रक्खें। रूपकंठ का उदय पांच भाग मोर निर्गम दो भाग रखखें ॥३०॥ विद्याधरैः समायुक्तं पोडशाष्टदिवाकरः । निःस्वामिक दलातुल्यै विराजितम् ।।३१॥ पाठ, दारह, सोलह, चौबीस अथवा बत्तीस विद्याधरों से युक्त सुन्दर वितान बनावें ॥३१॥ विद्याधरः पृथुत्वेन सप्तांशो निर्गमो' दश । तदुचे चित्ररूपाश्च नर्तक्यः शालमजिकाः ॥३२॥ विद्याधर का थर विस्तार में सात भाग और निर्गम में दस भाग रखें। उसके अपर अनेक प्रकार से नृत्य करती हुई, अनेक स्वरूप वाली देवांगना रक्खें ॥३२॥ गजतालुस्तु पटसार्धा प्रथमा द्वितीया तु षट् । तृतीया सार्धपञ्चांशा कोलानि त्रीणि पंच बा ||३३|| प्रथम गजलानु साढे छह भाग, दुसरा गजताल छह भाग और तीसरा गतानु साढे पांच माग का रक्खें । तीन अथवा पांच कोल का थर दनावें ॥३३।। मध्ये वितानं कर्तव्यं चित्रवर्णविराजितम् । नाटकादिकथारूपै-नानाकारविराजितम् ॥३४॥ मड के मध्य में वितान ( चंदोदा ) अनेक प्रकार के चित्रों से शोभायमान बनावें तया संगीत और नृत्य करती हुई देवांगनामों से और पुराणादि के अनेक प्रकार के कथारूपों से मुशोभित बनावें ॥३४॥ वितान संख्या एकादशशतान्येव वितानानां प्रयोदश । शुद्धसङ्घाटमिश्राणि क्षिप्तोत्क्षिप्तानि यानि च ॥३५॥ __ ग्यारहसौ तेरह प्रकार के वितान हैं। वे शुद्ध संघाट (समतल वाले ), संषामित्र सम विषम तल बाला, क्षिप्त ( नोचे भाग में लटकते घरों वाला) और उरिक्षम (ऊपर उठी हुई गोलाई वाला) ये चार प्रकार के वितान हैं ॥३५॥ : ... .... १. सिगमोदयः । २. 'मुस्पशोभिताः ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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