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________________ SaiRTimi सप्तमोऽध्यायः t ra..... finitionRRRRRRRRRRRAHARAMus icRERNATrinition गूढमण्डप की फालना-- कर्ण तो द्विगुण भद्रं पादोनप्रतिकर्णकः । भद्रा मुखभद्रं च शेष पवसु भाजितम् ।।१०॥ कोने से दुगुणा भद्र और पोन भाग का प्रतिरथ रदखें, भद्र से प्राधा मुखभद्र रखखें। बाको नंदी प्रादि घट्ट अथवा पाठवें भाम की रक्खें ।।१८।। दलेनार्थेन पादेन दलस्य निर्गमो भवेत् । मूलप्रासादवद् भाटे पीठजलादिमेखला ॥१६॥ फालनामों का निर्गम अपना चौथा अथवा प्राधा भाग का रखें तथा पीठ अंधा प्रादि को मेखलाएं मुख्य प्रासाद के जैसी बाहर निकलती हुई बनावें ॥१६॥ गशक्षणान्वितं भद्र-मथ जालकसंयुतम् । गूढोऽथ कर्णगूढो पा भद्रे चन्द्राबलोकनम् ॥२०॥ गूठ मंडप के भद्र में. जाली अथवा गवाक्ष बनावें । कोने गुप्त (अंधकार मय) रक्खें अर्थात् दीवार बनावें अथवा भद्र में चंद्रावलोकन (खुला भाग) रक्खें ॥२०॥ ::. :: त्रिबारे चैकवावेऽथ मुखे कायर्या चतुष्किका । गूढे प्रकाशके वृत्त मधोंदयं करोटकम् ॥२१॥ इत्पष्टगृहमण्डपाः मूढ मंडप में तोन अथवा एक द्वार बनावें और द्वारके प्रागे चौकी मंडप बनावें। मंडप को गोलाई के विस्तार मान से प्राधे मान का करोटक (गूमट) का उदय रक्खें ॥२१॥ विशेष जानने के लिये देखें अप० सू० १८७ वद्ध मानादि अष्टमंडप । गुमटके उपयका तीन प्रकार--- "अर्थोदयश्च यत्रोक्लो वामन उदयो भवेत् ! कृते चैव भवेच्छान्तिः सर्वयज्ञफलं लभेत् । अधोदयश्च नवधा द्वौ भागी परिवर्जयेत् । अनन्त उदयो नाम सर्वलोकसुखावहः ।। प्रोदयश्च नवधा त्रयभामान परित्यजेत् । वाराह उदयो नाम अनन्तफलदायकः ॥" ज्ञानरत्नकोशे। BHARATI alman s
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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