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________________ षष्ठोऽध्यायः तीन भाग का कंमा एक भाग की कोनी, दो भाग का प्रतिरथ, दो भाग की नंदी और दो भाग का भद्रार्ध रक्खें। इस प्रासाद के ऊपर सातसौ पचास श्रम है || ४२|| ८- स्वर्णकेतुमेरुप्रासाद भागैः कर्णादिगर्भान्तं 'वेदार्थसार्थव्ये कशः । च स्वर्णकेतुः स्यात् पञ्चसप्तशृङ्गः ॥४३॥ पाठवां स्वर्णकेतु नामके मेरु प्रासाद के तलका बाईस भाग करें। इनमें से चार भाग का कोना, आधे भाग की कोणी, साढ़े तीन भाग का प्रतिरथ, एक भाग की मंदी और दो भाग का भद्रार्थ बनावें । इस प्रासाद ऊपर पाठसौ पच्चहत्तर शृंग है ॥४३॥ E-वृषभध्वज मेरुप्रासाद ww वेदे करामयुग्मांश ने जिन विभाजिते वृषभध्वजमेरुश्च 1 काकसहस्रवान् ||४४॥ ari वृषभध्वज मेरु प्रासाद के तलका चौबीस भाग करें। इनमें से चार भाग का कोना, एक भाग की कोनी, तीन भाग का प्रतिरथ, दो भाग की नन्दी और दो भाग का भद्रार्ध रखें। यह प्रसाद एक हजार एक श्रृंग वाला है। सभ्रम भ्रमहीन महामेरु मद्वयम् । सान्धारेषु raisi भद्रे चन्द्रावलोकनम् ||४५|| ११६ उपरोक्त नव महामेरु प्रासाद भ्रम (परिकमा ) वाले अथवा विना भ्रमवाले बनायें जाते हैं । एवं दो श्रमवाले भी बनाये जाते हैं। यदि दो भ्रमवाले सान्धार मेरु प्रासाद बनाया जाय तब उसके भद्र में चंद्रावलोकन करना चाहिये अर्थात् प्रकाश के लिये जाली या गवाक्ष बनाना चाहिये ||४|| राज्ञः स्यात् प्रथमो मेरु-स्ततो हीनो द्विजादिकः । विना राशोऽन्यवर्णेन कृते मेरो महद्भयम् ||४६ ॥ १. 'वेदासाद' विसायः । २. 'ऽन्यदज ।' इति नवमेरुलक्षणम् । इति श्री सूत्रधार मण्डनविरचिते प्रासादमण्डने वास्तुशास्त्रे केसर्यादि प्रासादजाति लक्षणे पञ्चचत्वारिंशन्मेरुलक्षणे षष्ठोऽध्यायः ॥६॥
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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