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________________ षष्ठोऽध्यायः +- - - --- - Himmistani ASTHAN Ni t itio n istmaitri क्रमशः बीस २ श्रृंग अधिक चढाये जाते हैं। जैसे-~-पांच हाथ के विस्तार बाले मेरु प्रसाद के ऊपर एक सौ एक, छह हाथ के प्रासाद के ऊपर एकसौ इक्कीस, सात हाथ के प्रासाद के ऊपर एकसो इकतालीस, इस प्रकार बीस २ शृग बहाते हुए पचास हाथ के मेरु प्रासाद के ऊपर एक हजार एक शृंग हो जाते हैं ।।३१-३२॥ विमान नागर प्रासाद केसरिप्रमुखाः कर्णे विमानमुरुगकम् । तथैव मूलशिखरं पञ्चभूमिविमानकम् ।।३३।। पिमाननागरा जाति-स्तदा प्रारुद्राहता । . एवं भोकभङ्गाणि सम्मनन्ति बहन्यपि !!३४।। जिस प्रासाद के कोने के ऊपर केसरी आदि के अनेक म हों, और भद्र के ऊपर उरुग हों, तथा मूल शिखर पोत्र भूमि ( माल ) वाला विमानाकार हों, इसको विद्वानों ने विमाननागर जाति का प्रासाद कहा है । इसके ऊपर अनेक शृग और उरुम होते हैं ॥३३-३४॥ *१-श्रीमरुप्रासाद और २-हेमशीर्ष मेरुप्रासाद श्रीमलष्टमागः स्या-देकोत्तरशताण्डकः ! हेमशीषों दशांशश्च युतः सार्धशताण्डकैः ॥३५॥ पहला श्रोमेरुप्रासाद पाठ तलविभक्ति बाला और एकसौ एक शृग वाला है। दूसरा हेमशीर्ष मेरुप्रासाद दश तल विभक्तिवाला और डेढसौ गवाला है ।।३।। ३-सुरवल्लभ मेरुप्रासाद भागैदिशभियुक्तः सार्ध द्विशतसंयुतः : सुरवल्लभनामा तु प्रोता श्रीविश्वकर्मणा ॥३६॥ कणों द्विभाग एकांशा कोणी साधः प्रतिस्थः । अर्धाशा नन्दिका भद्र--मधं भागेन सस्मितम् ॥३७॥ तीसरा सुरवल्लभ नाम का मेरु प्रासाद बारह तल विभक्ति वाला और दोसौ पचास { ढाईसौ ) शृगवाला है । ऐसा श्री विश्वकर्माजी ने कहा है । कोना दो भाग, कोणी एक भाग, ... ...." Hiridiviniatutifm i rrirm i natomimicensements . येन मे प्रासाद का स्वरूप सविस्तर जानने के लिए देशो अपराजित महा मुत्र, १८०
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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