SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कादिवसांनी मदरसातलभ १०० द्वे द्वे कर्णे तथा भद्रे शृङ्गमेकं प्रतिरथे । मन्दिरस्तृतीयं मद्रे मलपो भद्रजं त्यजेत् ||१८|| ऊपर तीन अंगवाले प्रासादों का वर्णन कहा गया है। अब पfe अंगवाले प्रासादों का वर्णन करते हैं- समबोरस प्रसाद के तलका छह भाग करें। इनमें कर्ण, प्रतिक मोर भद्रार्ध मे प्रत्येक एक २ भाग का रक्वें । कर्ता और प्रतिक का निर्गम समदल रक्खें और मद्र का निर्गम आधा भाग रखना चाहिये | कर्ण और भद्र के कार दो दो और प्रतिक के ऊपर एक २ शृङ्ग चढ़ावें । ऐसा मंदिर नाम का प्रसाद है। इस प्रासाद के भद्र के कार तीसरा एक उरुशृंग चढ़ावें तो मलय नाम का प्रासाद होता है ।।१६ से १८३ संख्या २५ | कोणे ८, भद्रं ५ प्ररये ८ एक शिखर | ७- विमान, ८- विशाल और प्रासादमण्डने त्रैलोक्यभूषण प्रासावविमानकः । सुभूषणः ||१६|| प्रस्थ तिलकं कुर्यात् प्रतिरथे वैशाल: भद्रो प्रतिरथे इति पञ्चांगाः पंचप्रासादाः । ऊपर श्लोक १८ के अंत में 'भद्रजं स्वजेत्' शब्द का यहां अर्थ करें। मलय नाम के प्रासाद के भद्र ऊपर से एक उरुग हटा करके कर्ण के दोनों तरफ एक र प्रत्यंग चढायें और प्रतिरथ के ऊपर एक २ तिलक चढायें, तो इसे विमान नाम का प्रासाद कहा जाता है । विमान प्रासाद के भद्र के ऊपर एक २ ऊग अधिक चढायें, तो विशाल नाम का प्रासाद कहा ग अधिक बढाये तो उसे त्रलोक्यभूषण नामक मंदिर प्रसाद जाता है, और प्रतिरथ के ऊपर एक २ प्रासाद कहा है ।। १६ ।। विमान संख्याको तिलक संख्या--प्ररथे १-१ कुल ८ । प्रत्यंग एक शिखर एवं कुल ३३ । लोकभूषण श्रृंगसंख्याको प्रतिरये १६ भद्र प्रत्यंग में एक शिखर एवं ४१ शृंग और तिलक ८ विशाल संख्या-भद्र १२ बाकी पूर्ववत् कुल ३७ । तिलक ८ प्ररथे ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy