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________________ १२ प्रासादमएहने एक हाथ के विस्तार वाले प्रासाद के ध्वजादंड का विस्तार पौन अंगुल का रक्खें । पीछे पचास हाथ तक के प्रासाद में प्रत्येक हाय प्राधा २ अंगुल बढ़ा करके रखवें ॥४३|| ध्वजावंड को रचना-- सुवृत्तः सारदारुश्च ग्रन्थिकोटरवर्जितः । पर्वभिषिमः कार्यः समग्रन्थिः सुखावहः ॥४४॥ ध्वजादंड बहुत अच्छा और किसी प्रकार की गांठ या पोलारण मादि दोषों से रहित. तथा मजबूत काष्ठ का सुन्दर एवं गोलाकार बनावें । दंड में पर्व ( विभाग ) विषम संख्या में और प्रत्या (लो) समसंस्सा हो रखना सुखदायक हैं ॥४४॥ विषमपर्व बाले ध्वजादंड के तेरह नाम "जयन्तस्त्वेकपर्थश्च त्रिपर्वशत्र मर्दनः । पिङ्गल; पञ्चपर्धश्च सप्तपर्वश्च सम्भवः ।। श्रीमुखी नवपर्वश्च प्रानन्दो रुद्रपर्वकः । त्रिदेवों विश्वपर्वश्च तिथिभिदिव्यशेखरः ।। मुनीन्दुभिः कालदण्डो महोत्कटो नवेन्दुतः । सूर्याख्यस्त्वेकविंशत्या कमलो वह्निनेअतः ॥ तत्त्वपर्यो विश्वकमा दण्डनामानि पर्वतः । शस्तागस्तत्व मेतेषामभिधान गुणोद्भवम् ॥"अप० सू० १४४ एक पर्व वाला जयंत, तीन पर्वबाला शत्र मर्दन, पांच पर्व का पिंगल, सात पर्व का संभव, नद पर्व का श्रीमुख, ग्यारह पर्व का प्रानंद, तेरह पर्व का त्रिदेव, पंद्रह पर्व का दिव्यशेखर, सत्रह पर्व का कालदंड, उन्नीस पर्व का महाउत्कट, इक्कीस पर्व का सूर्य, तेबीस पर्व का कमल और पच्चीस पर्व को विश्वकर्मा कहलाता है । वे तेरह प्रकार के दंड के नाम पर्य के अनुसार हैं पोर नाम के अनुसार शुभाशुभ फल देने वाले हैं। ध्वजादण्ड को मर्कटी (पाटली) दण्डदीर्घपडंशेन मर्कव्यर्धेन विस्तृता । अर्द्धचन्द्राकृतिः पावें घण्टोर्चे कलशस्तथा ॥४५॥ ध्वजाद की लंबाई के घट्टे भाग की मर्कटी ( पाटली) की लंबाई रखें। लंबाई से माधी विस्तार में रक्खें। (विस्तार के तीसरे भाग की मोटाई रक्खें 1 ) पाटली का सम्मुख
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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