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________________ चतुर्थोऽध्यायः त्रिगुणोऽथ सपादोऽसी सार्थः पादोनवेदकः । चतुर: सपादोऽसौ सार्धः पादोनपञ्चकः ॥ इति षोseer चारं त्रिखण्डाद्यासु लक्षयेत् ॥" ० सू० १३६ ......................................................... त्रिखंडादि खंडों में सोलह कलाचारों के भेदों से सोलह र रेखायें उत्पन्न होती हैं । सोलह कलावार इस प्रकार है- प्रथम सम ( बराबर ) चार, दूसरा रूपाय ( सवाया ) चार, तीसरा सार्द्ध ( डेढ़ा ) चार चौथा पौने दो गुणा पांचवां दो गुगा, छट्टा सवा दो गुणा सातवां ढाई गुणा, आठवां पीने तीनगुणा, नयां तीनगुणा, दसवां सवा तीनगुणा, ग्यारहवां साढ़े तीनगुणा, बारहवां पीने चार गुणा, तेरहवां चार गुणा चौदहवां सवा चार गुणा, पंद्रहवां साढ़े चार गुणा और सोलहवां पौने पांच गुणा है । रेखासंख्या रेखाणां जायते संख्r पञ्चाशतद्वयम् । देति यावत्यः कलाः स्कन्धेऽपि तत्समाः ॥२१॥ मंडोवर और शिखर का उदयमान - (१) शिखरौदयम्' | मा० ११ ८१ इति रेखानिर्णयः । सोलह प्रकार के कलाकारों के भेदों से प्रत्येक त्रिखंडादि में सोलह २ रेखायें उत्पन्न होती हैं। इसलिये रेलों की कुल संख्या दोसी छप्पन होती हैं। शिखर के उदय में जितनी कलारेखा उत्पन्न हो, उतनी स्कंध में भी बनानी चाहिये ||२१|| विशद्भिर्विभजे भागैः शिलातः कलशान्तकम् । restrisaree-raiशैः शिखरं परम् ||२२|| खरशिला से लेकर कलश के यंत्र भाग तक के उदय के बीस भाग करें। उनमें से ग्राठ साढ़े आठ अथवा नव भाग का मंडोवर का उदय रक्खें, इसी क्रम से ज्येष्ठ मध्यम और कfag मान के मंडोवर का उदय होता है । ऐसा प० सू० १३८ में भी कहा है। बाकी जो भाग रहे, उतने उदय का शिखर बनावें ||२२|| शिखर विधान -- रेखालस्य विस्तारात् पद्मकोशं समालिखेत् । चतुर्गुणेन सूत्रेा सपादः शिखरोदयः ॥ २३॥ (२) 'विहारे' |
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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