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________________ चतुर्थोऽध्यायः LOS MAMALANAKIKARooo रेखाच ऊर्धा अष्टादशांशाः स्यु-स्तिर्यक्षोडश एव च । चक्रेऽस्मिञ्च भवन्त्येव रेखाणां पटशरद्वयम् ॥१७|| शिखर के उदय में अठारह और तिरछी सोलह रेखा होती हैं, ऐसा चक्र बनाने से दोसौ छप्पन रेखायें होती हैं, उपर 'कला रेखा को साधना' पढ़ें ॥१७॥ प्रथम समधार को त्रिखंडा कलारेखा--- त्रिखाडत् खण्डवृद्धिश्च पाक्दष्टादशैव हि । एकैकांशे कलाप्टौ च समचारस्तु षोडश ॥१८॥ भिखंड से लेकर एक २ संच बढ़ाते हुए प्रारह खंड तक बढ़ावें । प्रथम प्रत्येक त्रिखंड में • समवार को पाउ २ कला रेखायें हैं। ऐसे सोलह चार हैं ॥१८॥ दूसरा सपादचार को त्रिखंडा कलारेखा द्वितीयप्रथमे खण्डे कलादौ द्वितीये नन । तृतीये दशखण्डेषु शेयेपूर्वेष्वयं क्रमः ॥१६॥ दूसरा सावत्रार हो तो प्रथम खंड में प्रार, दूसरे खंड में नब और तीसरे खंड में दस कला रेखा बनावें । इस प्रकार बाकी के चारों में भी इसी क्रम रेखा बनावें ॥१६॥ तीसरा सार्द्धचार को त्रिखंडा कलारेखा--- अष्टदिक्सूर्यभार्गश्च त्रिखण्डा तृतीया भवेत् । अनेन क्रमयोगेन कोष्टानकै प्रपूरयेत् ॥२०॥ तीसरा सार्धचार हो तो प्रथम खंड में पाठ, दूसरे खंड में दस और तीसरे खंड में बारह कलारेखा बनावें। इस क्रम से दूसरे चारों के कोठे को अंकों से पूर्ण करें ॥२०॥ सोलह प्रकार के चार 'समः सपादः सार्द्धश्च पादोनो द्विगुणस्तथा । द्विगुणश्च सपादो द्वो सार्थः पादोनकस्त्रयः ।। -dentitatatistinur • श्लोक १५ से २० तक का खुलासा धार प्राशय समझने के लिये देखो पार के भेदों से निखका को रेखा और कला जानने का यंत्र।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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