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________________ चतुर्थोऽध्यायः mumment wwkersiplaintensifiyanidesistackjamuddicteriabesaneleoniengaisinginninputerminateyroainseconweevanicCHIViewwwitoile Tmmmm mmmmmuirmirmirmonimunoonamatamanaiaantyalaswammaniaWANANDuRY शिक्षर दोष कारक होता है और पांच भाग से कर रखें तो frer शोभायमान नहीं होता ।।१२॥ मानरलकोष में लीखा है कि-- "चतुरस्त्रीकृते क्षेत्र शधा प्रतिमानिले । दो दो भागो तु कर्तव्यो कोणे कोणे न संशयः ।। भद्रं भागत्रय कार्य सार्धभागं तु चामुगम् । भ्यासमान सपाद च उच्छयेण तु कारयेत् ।। स्कन्धं पडभागिकं कार्य तस्योय नवधा भवेत् । चतुर्भागायतं कोणं निभिर्भागस्तु भानुगम् ॥ भद्रपूर्ण तु दिभिर्भागस्ततस्तु साधमेत् कलाम् ।।" प्रासाद के समचोरस क्षेत्रका दस भाग करें। उममें से दो दो भाग के दो कोरण, लीन भाग का भद्र और डेट २ भाग के दो प्रतिकरण बनायें। मिलर विस्तार से ऊंचाई में सवाया रक्खें और उसका स्कंध छह भाग विस्तार में रक्खें। इसका नव भाग करके चार भाग के दोनों कोण, तीन भाग के दोनों प्रतिकर्ण और पूरा भद्र दो भाग का रक्खें। पीछे रेखा बनावें। . कलारसाको सामना"पादिकोणं द्विधा कृत्य प्रथम वेदभाजितम् ।। द्वितीयं तु विनिर्माग-रेवं . सप्तकला भवेत् । उदय पटभिर्भाग: कुस्मा रेखां समालिखेत् ॥ अतिर्यग भागानां भागे भागे तुलादयेत् । एवं तु विध्यते रेखा भद्रे , कोणे तवानुमें " एक तरफ के कोण का दो भार करें। उनमें से प्रथम भाग - का चार और दूसरे भाग का २५६ रेखा का नकशा iamarMROOPaana NT 14 । - - . सम्पाय name - 131412TH
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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