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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmunity तृतीयोऽध्यायः __उदुम्बर के प्रागे जो अर्द्ध चन्द्र के लेसी प्राकृति की जाती है. उसका उदय खुर घर के उदय के बराबर रक्खें। द्वार के विस्तार के बराबर मचन्द्र लंबा बनाये और लम्बाई से प्राधा निर्गम रक्खें । लम्बाई के तीन भाग करके उनमें से दो भाग का अद्धचंद्र और इसके दोनों तरफ प्राधे २ भाग का दो गमारक बनावें । अर्ध चन्द्र और गमारक के बीच में पत्तेवाली वेलयुक्त शंख और पापत्र जैसी माकृति से सुशोभित बनावें ॥४२-४३१) उसरंग "उदुम्बरसपादेन उत्तरङ्ग विनिदिशेत् । तदुच्छ.यं विभजेत भागा अथकविंशतिः ।। पत्रशाखा विशाखा च द्विसार्धा तु कारयेत् । मालाधरं च त्रिभाग कर्तव्यं दामदक्षिणे।। । अर्वे छाद्यकः पादोनः पादोना फालना तया! रथिका सप्तभागाच भार्गक ठं भवेत् ।। षड्भागमुत्मेधं कार्य-मुद्गर्म च प्रशस्यते । इदशं कारयेत् प्राज्ञः सर्वशफलं भवेत् ।।" वास्तुविद्या स०६ द्वार के उदुम्बर के उदय से उतरंग का उदय सवाया रक्खें। जो उदय प्रावे उसके इक्कीस भाग करें । उनमें से ढाई भाग को पत्रशाखा और विशाखा बनावें । उसके ऊपर तीन भाग का मालाधर, पौन भाग की छजी. पान भाग का फालना, सात भाप की रथिका (गवान }, एक भाग का कंठ और छह भाग का उद्गम बनावें। इस प्रकार बुद्धिमान पुरुष उतरंग बनावेंगे तो सब यज्ञों के बराबर फलदायक होता है। Are Fadline - माग---- 24.12RAJ... --ZARRES- -- RAJA Lyr MOHIDI
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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