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(1897 ई. में) तो एक अधिकृत अँगरेज लेखक ने कहा था कि इस देश का आधा व्यापार जैनों के ही हाथ में है और उनकी दानशीलता भी असीम है। स्वभावतः आज देश में जैनों द्वारा स्थापित एवं संचालित सहस्रों शिक्षा-संस्थाएँ, विद्यालय, महाविद्यालय शोध संस्थान, छात्रालय छात्रवृत्तिफण्ड श्रुतभण्डार, पुस्तकालय, प्रकाशन संस्थाएँ, ग्रन्थमालाएँ, विविध भाषाओं की पत्र-पत्रिकाएँ, चिकित्सालय, औषधालय, पशु-पक्षी चिकित्सालय, पिंजरापोल, गोशालाएँ, अनाथालय, महिला आश्रम, धर्मशालाएँ, रिलीफ सोसाइटियों आदि लोकोपकारी सार्वजनिक संस्थाएँ विद्यमान हैं। और ये सब उपलब्धियाँ वर्तमान में अनेक कारणों से अपेक्षाकृत अत्यन्त अल्पसंख्यक समाज रह जाते हुए भी अनुपात में प्रायः अन्य समस्त समाजों से कहीं अधिक है। तात्पर्य यह है कि पूर्वकाल की भाँति ही वर्तमान भारतीय जन-जीवन में जैनीजन प्रायः अग्रिम पंक्ति में हैं। उनका इतिहास उन्हें प्रेरणा देता रहेगा कि वह अग्रिम पंक्ति में बने रहें तथा प्रगतिपथ पर उत्तरोत्तर अग्रसर होते रहें ।
भषेक :- प्राचार्य श्री सुश्री
996 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ