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अज्ञानवश कई इतिहासकार, अतएव उनके पायक सामान्यजन भी, जैनों पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि भारतवर्ष के पतन और गुलामी के लिए जैन लोग उत्तरदायी हैं, क्योंकि इनका अहिंसाधर्म मनुष्य को कायर, डरपोक और निःसत्य बना देता है। परन्तु जो इतिहास के जानकार हैं वह जानते हैं कि सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में शायद एक भी ऐसा उल्लेखनीय उदाहरण नहीं है जब किसी जैन नरेश, सेनापतियों या मन्त्री के कारण किसी विदेशी शत्रु का उसके राज्य पर अधिकार हुआ हो। ऐसा भी शायद ही कोई दृष्टान्त मिले जन किसी प्रसिद्ध जैन सेनानी ने युद्ध में पोल दिखायी हो । अपितु देशरक्षा के लिए मर मिटनेवाले जैनवीरों के उदाहरण इसी पुस्तक में अनेक मिलेंगे। स्वधर्म पर दृढ़ रहते हार, देश पर तन-मन-धन सहर्ष न्यौछावर करनेवाले जैन वीरों की यशोगाथा, इतिहाससिद्ध होते हुए भी, सामान्य इतिहास पुस्तकों में ऐसी रली-मिली होती है कि उसे चीन्हना बहुधा अति दुष्कर होता है।
यह भी ध्यातव्य है कि भारत के प्रमुख अजैन राज्यवंशों में से बहुभाग के अबुध कई की जम अधिकारियों, सतीश प्रधाजन का विशेष योग रहा। मध्य एवं मध्योत्तरकाल में तो अनेक देशी राज्यों का अस्तित्व, विशेषकर राजस्थान में, उनके कुल क्रमागत जैन मन्त्रियों, दीवानों, सेनानियों और सेठों के कारण हो श्मा रहा। और जब जहाँ जैनों की उपेक्षा या अनादर हुआ, राज्य की अवनति और पतन भी शीघ्र ही हो गया ।
सम्भवतया इसका मुख्य कारण यह रहा कि धर्मप्राण होते हुए भी राक जैन गृहस्थ राजनीति को धर्म से पृथक् रखता रहा। एक मुसलमान सुल्तान या बादशाह का नारा था दीन की रक्षा या तरक्की के लिए जेहाद (युद्ध) करो, एक हिन्दू नरेश गो-ब्राह्मण की रक्षा के लिए युद्ध करता था, किन्तु एक जैनवीर, यद्यपि धर्मरक्षा उसे भी इष्ट होती थी, देश की रक्षा, शत्रु के दमन या राज्य के उत्कर्ष के लिए युद्ध करता था। वह राजनीति को धर्म का रूप देने का दोंग नहीं करता था, उसे गृहस्थ का एक परम कर्तव्य मानकर ग्रहण करता था। अतएव धर्म के लिए जैनों ने कभी बुद्ध किया, धर्म और साधर्मियों पर किये गये भीषण अत्याचारों के प्रतीकारस्वरूप भी इतिहास में ऐसा कोई दृष्टान्त नहीं मिलता।
वास्तव में यह एक भ्रान्ति है कि जैनधर्म या उसको अहिंसा मनुष्य की कायर, डरपोक, भीरु या निर्बल बनाती है। अहिंसा तो चीरों का धर्म है। यह लो निडरता, निर्भयता की पोषक है। मनुष्य के जीवन को संयमित, नियमित एवं अनुशासिल बनाकर वह उसे पुरुषार्थी, कर्मठ, निडर, दृढ़निश्चयी, सात्त्विक और कर्तथ्य-परायण बना देती है, साथ ही उदार, दयालु, परोपकारी और क्षमाशील भी। वर्तमान युग के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी में भी अहिंसा के बल पर ही देश में अभूतपूर्व जामति उत्पन्न की थी और अन्ततः उसे स्वतन्त्र कस दिया था। हिंसा को प्रश्रय देने से तो मनुष्य
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