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उपसंहार
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'कला, कला के लिए के अनुकरण पर 'इतिहास, इतिहास के लिए कहनेवाले लोग भी हैं, किन्तु 'कला' और 'इतिहास में भारी अन्तर है। जब कि कला अधिकांशलया कल्पना प्रसूत होती है, इतिहास प्रमाणित अथवा विश्वसनीय तथ्यों पर आधारित होता है। उन तथ्यों को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाने में इतिहासकार की कला का उपयोग हो सकता है। तथ्यों की व्याख्या और उनका मूल्यांकन करने में भी बह एक सीपा तक स्वतन्त्र होता है। कला मनोरंजन के लिए होती है, किन्तु इतिहास का लक्ष्य मात्र मनोरंजन नहीं होता। जसको उपयोगिता मनोरंजन से कहीं अधिक है। यह सोद्देश्य होता है।
वस्तुतः जातीय स्मृति का नाम ही इतिहास है। यदि कोई जाति अपने इतिहास से अनभिज्ञ रहती है तो इसका अर्थ है कि उसने अपनी स्मृति खो दी है, अतएव अपना अस्तित्व भी भुला दिया है। ऐसी स्थिति में उसे एक नयी जाति के रूप में प्रकट होना पड़ता है जिसे सब कुछ नये सिरे से सीखना होता है। जातीयता की वास्तविक अनुभूति उसमें हो नहीं सकती। उसका इतिहास ही एक ऐसी वस्तु है जो उसे जातीयता की भावना की कुंजी प्रदान कर सकती है, क्योंकि 'वर्तमान' आकाश में से अकस्मात् नहीं टपक पड़ता-अतीत में से ही उसका उदय होता है। अतीत का विकसित मूर्त रूप ही वर्तमान है। अतएव वर्तमान को जानने, समझने और भोगने के लिए अतीत का, अर्थात् इतिहास का ज्ञान अनिवार्यतः आवश्यक
इतिहास के चित्रपट पर अतीत के जो चित्र उभरकर आते हैं वे प्रायः किसी न किसी महान व्यक्ति पर केन्द्रित होते हैं। जैसा कि कार्यालय का कथन है "विश्व का इतिहास, अर्थात मनुष्य ने संसार में जो कुछ सम्पादन किया है उसका इतिहास, मूलतः उन महापुरुषों का ऐतिह्य है जो उक्त इतिहास के निर्माता रहे हैं। प्रत्येक युग में जो महानुभाव अपने अध्यवसाय, दृढचरित्र, प्रतिमा एवं प्रभावक व्यक्तित्व के बल पर अपने समय के अन्य मनष्यों से पर्याप्त ऊपर उठ सके, वही जन-सामान्य या जनसमूह की आकांक्षाओं, अभिलाषाओं एवं लक्ष्यों के नियोजक, नियामक और शिल्पी बने, उन्हें मूर्तरूप प्रदान कर सके और उनकी यथाशक्य पूर्ति कर सके।
392 :: प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ