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________________ की आयु में इस वीर की मृत्यु हो गयी। उसके पुत्र चत्रसिंह और कृष्णलाल भी साहसी थे, किन्तु धार्मिक प्रवृत्ति के सज्जन थे । मेहता चत्रसिंह भक्त और धर्मात्मा माने जाते थे। राणा शम्भूसिंह ने उन्हें मेवाड़ के प्रसिद्ध एकलिंगजी मन्दिर का दारोगा नियुक्त किया था, जिसके लिए उन्हें 90 रुपया मासिक वेतन, निःशल्क हवेली और सवारी के लिए घोड़ा मिला था। किन्तु देवद्रव्य समझकर उन्होंने वेतन का एक पैसा भी नहीं लिया। शम्भूसिंह की मृत्यु के उपरान्त ये विधवा रानी के कामदार नियुक्त हो गये। राज्य में इनकी पर्याप्त प्रतिष्ठा थी। इनकी मृत्यु 1916 ई. में हुई। इस प्रकार मेवाड़ (उदयपुर) राज्य में राणा फतहसिंह ( मृत्यु 1931 ई.) के समय तक अनेक राजमन्त्री और उच्च पदस्थ कर्मचारी जैनी होते रहे और उदयपुर के नगर सेठ भी प्रायः जैनी ही होते रहे। जोधपुर राज्य राव सूरतराम - सुप्रसिद्ध मुहनोत नैणसी के प्रपौत्र, करमली के पौत्र और मेहता संग्रामसिंह के पुत्र भगवन्तसिंह के पुत्र थे तथा नागौर नरेश बखतसिंह के फ़ौज - बख्शी थे। जब 1751 ई. में बखतसिंह (विजयसिंह) को जोधपुर का सिंहासन भी मिल गया तो यह उसके साथ जोधपुर थले आये और उस उपलक्ष्य में इन्हें दो ग्राम और तीन हजार रुपये पुरस्कार स्वरूप मिले। वह राज्यसेवा में बराबर बने रहे और 1763 से 1766 ई. तक राज्य के दीवान (प्रधान मन्त्री) रहे। उस काल में राज्य से पन्द्रह हज़ार रुपये की जागीर और प्राप्त की। इस बीच 1785 ई. में इन्होंने मराठा सरदार खाजू के साथ युद्ध करके उसे पराजित किया और उसको सैन्य-सामग्री को लूट लिया। दीवानगिरी से अवकाश प्राप्त कर लेने पर भी राव सूरतराम की प्रतिष्ठा पूर्ववत् बनी रही और 1773 ई. में इन्हें मुसाहिबी का अधिकार, 'राव' की पदवी, हाथी, पालकी और शिरोपाय तथा 21000 रुपये की अन्य जागीर राज्य से प्राप्त हुए। अगले वर्ष इनकी मृत्यु हो गयी। मेहता सवाईराम - राव सूरतराम के पुत्र थे और उनकी मृत्यु के उपरान्त 1774 ई. में इन्हें पिता के समस्त अधिकार, मुसाहिबी तथा जागीरों के पट्टे आदि मिले, जिनका इन्होंने 1792 ई. पर्यन्त उपयोग किया। ज्ञानमल, सवाईकरण, शुभकरण और फतहकरण नाम के उनके चार छोटे भाई थे ६ www. मेहता सरदारमल - मेहता सवाईराम के पुत्र थे और 1799-1800 ई. में जोधपुर राज्य के दीवान रहे तथा 2000 रुपये आय का एक ग्राम जागीर में प्राप्त किया था। मेहता ज्ञानमल - राव सूरतराम के छोटे पुत्र थे और जोधपुर नरेश विजयसिंह और मानसिंह के दीवान रहे तथा महाराज की ओर से गोंगोली के युद्ध में वीरतापूर्वक 356 : प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
SR No.090378
Book TitlePramukh Aetihasik Jain Purush aur Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages393
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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