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॥ अथ द्वितीयमादिनकम् ॥
१-इहोद्दिष्टे प्रत्यक्षपरोक्षलक्षणे प्रमाणद्वये लक्षितं प्रत्यक्षम् । इदानीं परोक्षलक्षणमाह
अविशदः परोक्षम् ॥१॥ २-सामान्यलक्षणानुवादेन विशेषलक्षणविधानात् 'सम्यगर्थनिर्णयः' इत्यनुवर्तते तेनाविशदः सम्यगर्थनिर्णयः परोक्षप्रमाणमिति ॥१॥ ३-विभागमाह
स्मृतिप्रत्यभिज्ञानोहानुमानागमास्तविधयः ॥२॥ ४-'तद्' इति परोक्षस्य परामर्शस्तेन परोक्षस्यैते प्रकारा न तु स्वतन्त्राणि प्रमाणान्तराणि प्रक्रान्तप्रमाणसङ्खयाविघातप्रसङ्गात् ।
परोक्ष प्रमाण
१-प्रत्यक्ष और परोक्ष, इन दो प्रपाणों का नामोल्लेख किया गया था, उनमें से प्रत्यक्ष का लक्षण बतलाया जा चुका है । अब परोक्ष प्रमाण का स्वरूप कहते हैं
परोक्ष का लक्षण-सूत्रार्थ-अविशद सम्यगर्थनिर्णय परोक्ष है ॥१॥
२-सामान्य लक्षण की अनुवृत्ति करके ही विशेष लक्षण का विधान किया जाता है, अतएव सम्यगर्थनिर्णय' इस पद की यहाँ अनुवृत्ति है । इस कारण पदार्थ का जो सम्यक निर्णय अविशद हो अर्थात जिस ज्ञान में 'इदम'रूप का प्रतिभास न हो अथवा जिसकी उत्पत्ति में दूसरे प्रमाण की अपेक्षा हो वह परोक्ष प्रमाण कहलाता है । तात्पर्य यह है कि प्रत्यक्ष की तरह परोक्ष प्रमाण भी सम्यक् निर्णयरूप होता है, किन्तु प्रत्यक्ष प्रमाण विशद होता है जब कि परोक्ष में विशक्ता नहीं होती, यही दोनों के स्वरूप में अन्तर है ॥१॥
३-परोक्ष के भेद-(सूत्रार्थ)-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, ऊह, अनुमान और आगम, यह परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद हैं ॥२॥
४-सूत्र में गृहीत 'तत्' शब्द से 'परोक्ष' का ग्रहण किया गया है । इससे यह सिद्ध किया गया है कि स्मृति आदि परोक्ष के ही प्रकार हैं--स्वतन्त्र प्रमाण नहीं हैं। इन्हें स्वतंत्र प्रमाण मान लिया जाय तो प्रमाण के दो भेद कहे हैं, उसमें बाधा होगी।।