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कलिकालर्सवज्ञ-श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिता
___( स्वोपज्ञवृत्तिसहिता)
॥ प्रमाण मी मां सा॥
अनन्तदर्शनज्ञानवीर्यानन्दमयात्मने । नमोऽर्हते कृपाक्लप्तधर्मतीर्थाय तायिने ॥१॥ बोधिबीजमुपस्कर्तुं तत्त्वाभ्यासेन धीमताम् |
जैनसिद्धान्तसूत्राणां स्वेषां वृत्तिर्विधीयते ॥२॥ १ ननु यदि भवदीयानीमानि जैनसिद्धान्तसूत्राणि, तहि भवतः पूर्व कानि किमीयानि वा तान्यासन्निति ? अत्यल्पमिदमन्वयुड्.क्थाः । पाणिनि-पिंगल-कणादाऽक्षपादादिभ्योऽपि पूर्व कानि किमीयानि वा व्याकरणादिसूत्राणीत्येदपि पर्यनुयुड्.क्ष्व !
( हिन्दी अनुवाद) अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य,और अनन्त आनन्दमय स्वरूपवाले,जगत् के जीवों पर कृपा करके धर्मतीर्थ की रचना करनेवाले और प्राणीमात्र के लिए सन्मार्ग के उपदेशक अर्हन्त
भगवान को नमस्कार हो॥१॥
तत्त्व ( वस्तु के यथार्थ स्वरूप ) के अभ्यास द्वारा बुद्धिमानों के बोधबीजसम्यक्त्व का उपस्कार करने के उद्देश्य से स्वरचित जैनसिद्धान्तसूत्रों की अर्थात् जैनदर्शनसम्मत तत्त्व का प्रतिपादन करनेवाले सूत्रों की टीका का निर्माण किया जाता है ॥२॥
१-शंका-जिन सूत्रों की वृत्ति-टीका-का आप निर्माण कर रहे हैं, वे सूत्र यदि आपके हैं तो आपसे पूर्व कौन से सूत्र थे? और वे किनके थे ?
समाधान-आपने अत्यन्त अल्प-संकीर्ण शंका उपस्थित की है । आपको यह भी तो पूछना चाहिए था कि पाणिनि से पहले व्याकरण के सूत्र, पिंगल से पहले पिंगलशास्त्र के सूत्रा कणाद से पहले वैशेषिकदर्शन के सूत्र कौन से थे ? और वे किनके थे ?