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________________ १४२ प्रमाणमीमांसा प्रयुक्ते वक्तुरभिप्रेतादर्थावान्तरकल्पनया तनिषेधो वाक्छलम् । यथा नवकम्बलोऽयं माणवक इति नूतनविवक्षया किथिते परः सङ्ख्यामारोप्य निषेधति-कुतोऽस्य 'नव कम्बला इति? । सम्भावनयातिप्रसङ्गिनोऽपि सामान्यस्योपन्यासे हेतुत्वारोपणेन तनिषेधः सामान्यच्छलम् । यथा अहो नु खल्वसौ ब्राह्मणो विद्याचरणसम्पन्न इति 'ब्राह्मणस्तुतिप्रसङ्गे कश्चिद्वदति-सम्भवति ब्राह्मणे विद्याचरणसम्पदिति । तत् छल. 'वादी ब्राह्मणत्वस्य हेतुतामारोप्य निराकुर्वन्नभियुङ्क्ते-यदि ब्राह्मणे विद्याचरणसम्पद् भवति, व्रात्येऽपि सा भवेत् व्रात्योऽपि ब्राह्मण एवेति । औपचारिके प्रयोगे मुख्यप्रति'षेधेन प्रत्यवस्थानमुपचारच्छलम् । यथा मञ्चाः क्रोशन्तीति उक्ते परः प्रत्यवतिष्ठते --कथमचेतनाः मञ्चाः क्रोशन्ति? मञ्चस्थास्तु पुरुषाः क्रोशन्तीति । तदत्र छलत्रयेऽपि वृद्धव्यवहारप्रसिद्धशब्दसामर्थ्यपरीक्षणमेव समाधानं वेदितव्यमिति ॥२९॥ (१)वाक्छल-वक्ता ने किसी साधारण-जिसका दूसरा भी अर्थ हो सकता है, शब्द का प्रयोग किया। प्रतिवादी उसके अभीष्ट अर्थ को छोड कर दूसरे अर्थ की कल्पना करके उसके वचन का खंडन करता है । यह वाक्छल है । जैसे-किसी ने कहा-'यह बालक नवकम्बल है ।' कहने वाले का अभिप्राय यह था कि इस बालक के पास नव-नवीन कम्बल है, किन्तु प्रतिवादी 'नव' शब्द में संख्या का आरोप करके कहता है-कहाँ हैं इसके पास नौ कम्बल ? ऐसा कहना बाक्छल है। (२)सामान्यछल-संभावना के आधार पर व्यभिचरित सामान्य का कथन करने पर प्रतिवादी यदि उस कथन को हेतु मान लेता है और उस कथन का निषेध करता है तो वह सामान्य छल कहलाता है । यथा 'वाह, यह ब्राह्मण है विद्या और आचरण से सम्पन्न! इस प्रकार ब्राह्मण की प्रशंसा के प्रसंग में कोई कहता है-ब्राह्मण में विद्या और आचरण की सम्पत्ति हो सकती है। तब छलवादी ब्राह्मणत्व को हेतु मानकर पूर्वोक्त कथन का निराकरण करता हुआ कहता है-यदि ब्राह्मण में विद्या और आचरण की सम्पत्ति हो सकती हैं तो व्रात्य में भी होनी चाहिए। व्रात्य मी तो ब्राह्मण ही है ! ____ तात्पर्य यह है कि यहां ब्राह्मण होने के कारण विद्या और आचरण के होने की संभावना मात्र की गई थी मगर छलवादी ने ब्राह्मणत्व को हेतु मान लिया अर्थात् यह पुरुष विद्या और सदाचार से सम्पन्न है, क्योंकि ब्राह्मण है, जो ब्राह्मण होते हैं वे विद्या और सदाचार से सम्पन्न होते हैं। इस प्रकार की कल्पना कर ली और इसी कल्पना के आधार पर वादी के कथन में प्रात्य से व्यभिचार बतलाया । यही सामान्य छल कहलाता है ।। (३) उपचारछल-उपचरित प्रयोग करने पर उसे मुख्य प्रयोग मानना और उसका निषेध करना उपचारछल है। यथा -'मञ्चाः क्रोशन्ति-मांचे शोर करते हैं इस प्रकार उपचार से कहने पर छलवादी कहता है-अचेतन मांचे कैसे शोर कर सकते हैं ? मंचस्थ पुरुष शोर कर रहे हैं। यह उपचार छल है। इन तीनों छलों का समाधान वृद्ध जनों के व्यवहार से प्रसिद्ध शब्दसामर्थ्य की परीक्षा करना ही है ॥२९॥
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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