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प्रमाणमीमांसा
प्रमाणे तयोरसिद्धेरिति । साध्यविकलसाधनविकलोभयविकलाः, सन्दिग्धसाध्यान्वय. सन्दिग्धसाधनान्वयसन्दिग्धोभयान्वयाः, विपरीतान्वयः, अप्रदर्शितान्वयश्चेत्यष्टौ साधHदृष्टान्ताभासाः । साध्याव्यावृत्तसाधनाव्यावृत्तोभयाव्यावृत्ताः, सन्दिग्धसाध्यव्यावृत्तिसन्दिग्धसाधनव्यावृत्तिसन्दिग्धोभयव्यावृत्तयः, विपरीतव्यतिरेकः, अप्रदर्शितव्यतिरेकश्चेत्यष्टावेव वैधर्म्यदृष्टान्ताभासा भवन्ति। : ५९-नन्वनन्वयाव्यतिरेकावपि कश्चिद् दृष्टान्ताभासावुक्तौ, यथा रागादिया नयं वचनात् । अत्र साधर्म्यदृष्टान्ते आत्मनि रागवचनयोः सत्यपि साहित्य, धन्य। दृष्टान्ते चोपलखण्डे सत्यामपि सह निवृत्तौ प्रतिबन्धाभावेनान्वयव्यतिरेकयोरभाव इत्यनन्वयाव्यतिरेको । तौ कस्मादिह नोक्तौ?। उच्यते-ताभ्यां पूर्वे न भिद्यन्त इति साधर्म्यवैधाभ्यां प्रत्येकमष्टावेव दृष्टान्ताभासा भवन्ति । यदाहुः
. तात्पर्य यह है-जो-जो कृतक होता है वह वह सब अनित्य ही होता है जैसे घट, जो बसे अनित्य नहीं होता वह वह सब कृतक नहीं होता, जैसे आकाश । इस प्रकार व्याप्ति प्रदर्शित न. किया जाय तो अप्रदर्शितान्वय और अप्रदर्शितव्यतिरेक दृष्टान्ताभास होते हैं। यहां जो जो इस प्रकार दो बार 'जो' शब्द का या 'सब' शब्द का या 'ही' शब्द का प्रयोग न करने से उक्त दोष नहीं होते।
सब मिल कर अन्वय दृष्टान्ताभास और व्यतिरेकहटान्तामास के आठ-आठ भेद इस प्रकार हैं
अन्वयदृष्टान्तामास-(१) साध्यविकलअन्वयदृष्टान्ताभास (२)साधन विकल अन्वयहष्टान्ताभास (३) उभयविकलदृष्टान्ताभास (४) संदिग्धसाध्य अन्वयदृष्टान्ताभास (५)संदिग्धसाधन अ० (६)संदिग्धउभय अ० (७) विपरीतान्वय० (८)अप्रदर्शितान्वयदृष्टान्ताभास ।
व्यतिरेकदृष्टान्ताभास-(१)साध्याव्यतिरेकी दृष्टान्ताभास (२) साधनाव्यतिरेकी (३)उभयाव्यतिरेको (४) संदिग्धसाध्यव्यतिरेकी (५)संदिग्धसाधनव्यतिरेकी (६) संदिग्ध उभपतिरेकी (७) विपरीतव्यतिरेको (८) और अप्रदर्शितव्यतिरेको दृष्टान्तामास ।
- ५९-प्रश्न-किन्हीं-किन्हीं आचायों ने अनन्वय और अव्यतिरेक नामक दृष्टान्तामास भी बतलाए हैं । जैसे-'यह पुरुष रागादिमान है, क्योंकि वक्ता है । यहाँ साधर्म्य दृष्टान्त आत्मा में राग और वचन दोनों का साथ-साथ अस्तित्व पाया जाता है और वैधर्म्यदृष्टान्त पाषाणखंड में दोनों का अभाव होता है-अर्थात् जो वक्ता होता है वह रागादिमान् होता है, जैसे-संसारी आत्मा और जो रागादिमान नहीं होता वह वक्ता भी नहीं होता, जैसे पाषाणखंड । इस प्रकार साध्य और साधन की साथ-साथ सत्ता और असत्ता होने पर भी इनमें अन्वय और व्यतिरेक का वास्तव में अभाव है ( क्योंकि किसी आत्मा में वक्तृत्व होने पर भी रागादि का अभाव होता है )। अतएव वचन और रागादि का निश्चित अविनामाव न होने से अनन्वय और अव्यतिरेक दोष है। इन दोनों का आपने उल्लेख क्यों नहीं किया है ? उत्तर-पूर्वोक्त आठ भेद इनसे पृथक नहीं हैं। अर्थात् वे अनन्वय और अव्यतिरेक ही हैं, अतएव इन दो को पृथक् कहने की आवश्यकता नहीं रहती। इस प्रकार एक-एक दृष्टान्ताभास के आठ आठ ही भेद होते हैं , कहा भी है- ..