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प्रमाणमीमांसा
१३.१ ५५ सन्दिग्धसाध्यसाधनोभयान्वयाः सन्दिग्धसाध्यसाधनोभयध्यतिरेकाश्च त्रयस्त्रयो दृष्टान्ताभासा भवन्ति । के इत्याह-रथ्यापुरुषादयः' । कस्मिन् साध्ये?। 'रागे' 'मरणधर्मकिञ्चिज्ज्ञत्वयोः' च । कस्मादित्याह-'वचनात्' 'रागात्' च । तत्र सन्दिग्धसाध्यधर्मान्वयो यथा विवक्षितः पुरुषविशेषो रागी वचनात् रथ्यापुरुषवत् । सन्दिग्धसाधनधर्मान्वयो यथा मरणधर्माऽयं रागात् रथ्यापुरुषवत् । सन्दिग्धोभयधर्मान्वयो यथा किञ्चिज्ज्ञोऽयं रागात् रथ्यापुरुषवदिति । एषु परचेतोवृत्तीनां दुरधिगमत्वेन साधर्म्यदृष्टान्ते रथ्यापुरुषे रागकिञ्चिज्ज्ञत्वयोः सत्त्वं सन्दिग्धम् । तथा सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेको यथा रागी वचनात् रथ्यापुरुषवत् । सन्दिग्धसाधनव्यतिरेको यथा मरणधर्माऽयं रागात् रथ्यापुरुषवत् । सन्दिग्धोभयव्यतिरेको यथा किञ्चिज्ज्ञोऽयं रागात् रथ्या पुरुषवत् । एषु पूर्ववत् परचेतोवृत्तेर्दुरन्वयत्वाद्वधर्म्यदृष्टान्ते रथ्यापुरुषे रागकिञ्चिज्ज्ञत्वयोरसत्त्वं सन्दिग्धमिति ॥२५॥
____५५-संदिग्धसाध्यान्वय, संदिग्धसाधनान्वय और संदिग्धसाध्यसाधनान्वय, संदिग्धसाध्यव्यतिरेक, संदिग्धसाधनव्यतिरेक और संदिग्धसाध्य-साधनव्यतिरेक, इस प्रकार तीन-तीन दृष्टान्ताभास संदेह के कारण होते हैं। ये दृष्टान्तामास 'वचन'हेतु और 'राग'हेतु से राग तथा मरणधर्मता या किचिज्ज्ञता सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त रथ्यापुरुष आदि हैं। इनके उदाहरण इस प्रकार हैं
(१) संदिग्धसाध्यान्वय-अमुक पुरुष रागी है क्योंकि वक्ता है, जो वक्ता होता है वह रागी होता है' जैसे राहगीर पुरुष । (यहाँ राहगीर में राग का होना संदिग्ध है, क्योंकि दूसरे के चित्त की वृत्ति दुर्जेय होती है ।) (२) संदिग्धसाधनान्वय-यह पुरुष मरणधर्मा है, क्योंकि इसमें राग है, जैसे राहमीर । (यहाँ राहगीर में साधन-राग का अस्तित्व संदिग्ध है।) (३) संदिग्धसाध्यसाधनान्वय-यह पुरुष अल्पज्ञ है, क्योंकि रागवान् है. जैसे राहगीर । ( यहाँ राहगीर में अल्पज्ञता साध्य और रागवत्त्व साधन होना निश्चित नहीं है।)
दूसरे की चित्तवृत्ति को समझना आसान नहीं है, अतएव राह चलते किसी पुरुष में राग और अल्पज्ञता का सत्त्व निश्चित नहीं होता है । (अन्वय दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों का अस्तित्व निश्चित होना आवश्यक है। यहाँ उनका अस्तित्व निश्चित न होने से ये दृष्टान्ताभास है।)
(१) संदिग्धसाध्यव्यतिरेक-यह पुरुष रागी है, क्योंकि बोलता है । जो रागी नहीं होता वह बोलना नहीं है, जैसे राहगीर ।(यहाँ राहगीर में रागीपन का अभाव निश्चित नहीं होता है व्यतिरेक दृष्टाःत में साध्य और साधन दोनों का अभाव निश्चित होना चाहिए (२) संदिग्ध साधनव्यतिरेक--यह पुरुष मरणधर्मा है, क्योंकि रागी है,जो मरणधर्मा नहीं होता वह रागी नहीं होता, जैसे राहगीर। (यहाँ साधन का अभाव निश्चित नहीं होता है ।) (३) संदिग्ध उभयव्यतिरेक-यह पुरुष अल्पज्ञ है, क्योंकि रागी है, जो अल्पज्ञ नहीं होता वह रागी नहीं होता,जैसे राहगीर पुरुष । (यहाँ दृष्टान्त में साध्य और साधन दोनों ही संदिग्ध होने से दृष्टान्ताभास हैं। ___ इन सब दृष्टान्तों में भी पूर्ववत् राग और अल्पज्ञता के अभाव का निश्चिय नहीं, क्योंकि दूसरे को चित्तवृत्ति को जानना असान नहीं है । अतएव यह वैधर्म्यदृष्टान्ताभास है। )॥२५॥