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________________ १६ प्रमाणमीमांसा नाम?। यदि पक्ष एव वर्तमानत्वम् ; तत् सर्वस्मिन् क्षणिके साध्ये सत्त्वस्यापि समा. नम् । साध्यधर्मवतः पक्षस्यापि सपक्षता चेत् इह कः प्रद्वेषः?। पक्षादन्यस्यैव सपक्षत्वे लोहलेख्यं वज्रं पार्थिवत्वात् काष्ठवदित्यत्र पार्थिवत्वमपि लोहलेख्यतां वजे गमयेत् । अन्यथानुपपत्तेरभावान्नेति चेत् इदमेव तहि हेतुलक्षणमस्तु । अपक्षधर्मस्यापि साधनत्वापत्तिरिति चेत् ; अस्तु यद्यविनाभावोऽस्ति शकटोदये कृत्तिकोदयस्य, सर्वज्ञसद्भावे संवादिन उपदेशस्य गमकत्वदर्शनात् । काकस्य काष्ण्यं न प्रासादे धावल्यं विनानुपपद्यमानमित्यनेकान्तादगमकम् । तथा, घटे चाक्षुषत्वं शब्देऽनित्यतां विनाप्युपपद्यमानमिति । तन्न श्रावणत्वादिरसाधारणोऽप्यनित्यतां व्यभिचरति । ननु कृतकत्वाच्छब्दस्यानित्यत्वे साध्ये पर्यायवद् द्रव्येऽप्यनित्यता प्राप्नोति । नैवम्,पर्यायाणा. मेवानित्यतायाः साध्यत्वात्,अनुक्तमपीच्छाविषयीकृतं साध्यं भवतीति किं स्म प्रस्म भी असाधारण होना चाहिए । अगर वहाँ साध्य धर्म वाले पक्ष को ही सपक्ष मान लेते हो तो यहां भी ऐसा मान लेने में क्या द्वेष है? यदि ऐसा कहते हो कि सपक्ष. पक्ष से भिन्न ही होना चाहिए तो 'वज्र लोहलेख्य है, क्योंकि वह पार्थिव है, जैसे काष्ठ ।' यहाँ पार्थिवत्व हेतु वज्र में लोहलेख्यता का गमक होना चाहिए (क्योंकि यहाँ पक्ष से भिन्न सपक्ष विद्यमान है । ) यदि कहो कि पार्थिवत्व के साथ लोहलेख्यता का अविनाभाव नहीं है, इस कारण वह गमक नहीं है तो फिर अविनाभाव को ही हेतु का लक्षण स्वीकार करना चाहिए । सपक्षसत्त्व हो या न हो) शंका-यदि अविनाभाव को ही हेतु का लक्षण मान लिया जाय और सपक्षसत्त्व न होने पर भी हेतु गमक हो जाय तो पक्ष धर्मता के विना भी हेतु. गमक होने लगेगा। समाधान-यदि अविनाभाव विद्यमान हो तो भले गमक हो जाय,पक्ष धर्मता के विना भी शकटोदय साध्य में कृत्ति. कोदय हेतु गमक होता है और सर्वज्ञ के सद्भाव में संवादक उपदेश गमक देखा जाता है (यद्यपि यहाँ पक्षधर्मता नहीं है । 'प्रासाद धवल है, क्योंकि कौवा काला है,' यहाँ हेतु अविनाभावी है अर्थात् काक को कृष्णता की प्रासाद को धवलता के साथ व्याप्ति निश्चित नहीं है। इसी कारण अनेकान्तिक होने से यह हेतु गमक नहीं होता है । इसी प्रकार शब्द अनित्य है,क्योंकि घट चाक्षुष है'यह हेतु भी पक्षधर्मता के अभाव के कारण अगमक नहीं है, किन्तु अविनामाव के अभाव के कारण अगमक है । घट में चाक्षुषता शब्द में अनित्यता के बिना भी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि हेतु भले समक्ष या पक्ष में न रहता हो,किन्तु यदि साध्य के साथ उसका अविनाभाव निश्चित है तो वह गमक हो ही जाता है । प्रस्तुत में श्रावणत्व' हेतु असाधारण अर्थात् समक्ष में न रहता हुआ भी अनित्यत्व का अविनाभावी है। १-एक मुहूर्त पश्चात् शकट नक्षत्र का उदय होगा, क्योंकि अभी कृत्तिका का उदय है। २-कोई पुरुष सर्वज्ञ है, क्योंकि ज्योतिष ज्ञान में संवाद की अन्यथानुपपत्ति है।
SR No.090371
Book TitlePraman Mimansa
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherTilokratna Sthanakvasi Jain Dharmik Pariksha Board
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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