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प्रस्तावना
३४ प्रसिद्ध हुए ), जयराशि भट्ट के तत्वोपप्लव' की 'युक्तियों के बल से पाटन की सभा में बाद करने वाला भृगुकच्छ ( भडोच ) का कोलकवि धर्म, तर्कशास्त्र के प्रौढ़ अध्यापक जैनाचार्य शान्तिसूरि जिनकी पाठशाला में 'बौद्ध तर्क में से उत्पन्न और समझने में कठिन ऐसे प्रमेयों की शिक्षा दी जाती थी और इस तर्कशाला के समर्थ छात्र मुनिचन्द्र सूरि इत्यादि पण्डित प्रख्यात थे । 'कर्णसुन्दरी नाटिका' के कर्ता काश्मीरी पण्डित बिल्हण ने और मवाजीटीकाकार अभयदेवसूरि ने कर्णदेव के राज्य में पाटन को सुशोभित किया था ।।
__ जयसिंह सिद्धराजके समय में सिंह नामका सांस्यवादी, जैन वीराचार्य, 'प्रमाणनयतत्वालोक' और टीका 'स्थाद्वादरत्नाकर' के रचायता प्रसिद्ध तार्किक वादिदेवसूरि इत्यादि प्रख्यात थे । 'मुद्रितकुमुदचन्द्र' नामक प्रकरण में जयसिंह की विद्वरसभा का वर्णन आता है। उसमें तर्क, भारत और पराशर के महषि सम महर्षिका, शारदादेश ( काश्मीर ) में जिनकी विद्या का उज्ज्वल महोत्सव सुविख्यात था ऐसे उत्साह पण्डित का, अद्भुत मतिरूपी लक्ष्मी के लिए सागरसम सागर पण्डित का और ममाणशास्त्र के महार्णव के पारंगत राम का उस्लेख पाता है ( अंक ५, पृ० ४५)। वडनगर की प्रशस्ति के रचयिता प्रज्ञाचक्षु, पाबाट ( पोरवाड ) कवि श्रीपाल और 'महाविद्वान्' एवं 'महामति' आदि विशेषणयुक्त भागवत देवबोध परस्पर स्पर्धा करते हुये भी जयसिंह के मान्य थे। वाराणसी के भाव बृहस्पति ने भी पाटन में आकर शवधर्म के द्वार के लिए जयसिंह को समझाया था । इसी भाव बृहस्पति को कुमारपाल ने सोमनाथ पाटन का गण्ड ( रक्षक) भी बनाया था।
इनके अतिरिक मलधारी हेमचन्द्र, गणरत्नमहोदधि' के कर्ता वर्षमानसुरि, 'वाग्भट्टालंकार के कर्ता वाग्भट्ट आदि विद्वान् पाटन में प्रसिद्ध थे । र ___ इस पर से ऐसी कल्पना होती है कि जिस पण्डित मण्डल में आ० हेमचन्द्र ने प्रसिद्धि प्राप्त की वह साधारण न था। उस युग में विद्या तथा कला को जो उत्तेजन मिलता था' उससे हेमचन्द्र को विद्वान् होने के साधन सुलभ हुए होंगे, पर उनमें अग्रसर होने के लिए असाधारण बुद्धि कौशल दिखाना पड़ा होगा।
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श्री जिनविजय जी ने कहा है उसके अनुसार भारत के कोई भी प्राचीन ऐतिहासिक पुरुष विषयक जितनी ऐतिश्य सामग्री उपलब्ध होती है उसकी तुलना में आ० हेमचन्द्र विषयक लम्प सामग्री विपुल कही जा सकती है। फिर भी आचार्य के जीवन का सुरेख चित्र चित्रित करने के लिए वह सर्वथा अपूर्ण है।
बुद्धिसागर कृत ... श्लोक प्रमाण संस्कृत व्याकरण जाबाढिपुर ( जालोर, मारवाद ) में वि० सं० १14.(इ. स. ११.)में पूर्ण हुआ था। जिनेश्वर ने तर्क ऊपर ग्रंथ लिखा था। देखो पुरातत्व पुस्तक २, पृ.८१-८४; काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ. १४४-४५१
२ देखो काव्यानुशासन प्रस्तावना पृ. ॥२-६१ ।
३ देखो, शिल्पकला के लिए-'कुमारपालविहारशतक'-हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र कृत, जिसमें कुमारपाल विहार नामक मंदिर का वर्णन है।