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बताता हुआ उसके विरूद्ध मिथ्याज्ञान की निवृत्ति बताने के द्वारा उसके कारण मिथ्यावाद के अभाव को निर्दोष सिद्ध करता है । 194 ।।
अकार्यकारणमप्यनेकधा, विरुद्धव्याप्तादिविकल्पात् |विरुद्धव्याप्तं यथा, नास्ति भावेषु सर्वथैकांतः सत्वादिति, सत्वं खल्वनेकांतेन व्याप्तमन्यथा तदनुपपत्तेः । तथाहि —तदर्थक्रियाकारिण एव 'व्योमारविंदादावतत्कारिणि तदभावात् ।।95 ||
अकार्यकारण भी अनेक प्रकार का है-- विरूद्ध व्याप्त आदि के भेद से | विरूद्ध व्याप्त का उदाहरण - "नास्ति भावेषु सर्वथैकान्तः सत्वात्" । पदार्थों में सर्वथा एकान्त नहीं है सत्व होने से सत्व हेतु अनेकान्त से व्याप्त है, अनेकान्त के बिना उसकी उत्पत्ति नहीं होने से। कहा भी है--सत्व अर्थक्रियाकारी के ही होता है, अर्थक्रियाकारी नहीं होने पर आकाश कुसुम आदि में सत्व के नहीं होने से। 19511
तत्कारी च यद्येकस्वभाव:, अत एकमेव कार्यभवेन्न देशादि भिन्नमनेकम् । अन्यथा सकलस्यापि जगत एकहेतुकत्वापत्तेः । सहकारिभेदादेकस्वभावादपि तदनेकमुपपन्नमेवेति चेत्, तद्भेदस्यैव तर्हि तत्र हेतुत्वं तदनुतयैव तस्योत्पत्तेर्नैकस्वभावस्य विपर्ययात् । तस्यापि तदा भावाद्धेतुत्वेऽतिप्रसंगतत्काल भाविन सर्वस्याणि तत्र तत्वापत्तेः । नैकस्वभावस्य नाऽपि सहकारिभेदस्य तत्र हेतुत्वं, तत्समुदायस्यैव तत्वादिति चेत्, तस्यैव तर्हि सत्वं स्यान्न प्रत्येकं समुदायिनां न च तदभावे समुदायस्यापि तत्तद्व्यतिरेकिणस्तस्याप्रतिवेदनादित्यनकस्वभावस्यैककार्यकारित्वमभ्यनुज्ञातव्यम् । अनेकस्वभावत्वं च तस्य तत्वं तथाविधात्तद्धेतोरिति नानवस्थानमत्रदोषस्तत्प्रबंधस्यानादित्वादित्युपपन्नमनेकांतव्याप्ततया सत्वस्य तद्विरोधिसर्वथै कांतप्रत्याख्यानं प्रति साधनत्वम् | 196 ||
स्वकारणात्तथाविधात्तस्याऽपि
परपक्ष कहते हैं - अर्थक्रियाकारी यदि एक स्वभाव वाला है तो उससे एक ही कार्य होना चाहिये, देश, काल आकार आदि भिन्न अनेक कार्य नहीं, अन्यथा संपूर्ण संसार का एक ही कारण होने का प्रसंग आयेगा । सहकारी के भेद से एकस्वभाव वाले से भी अनेक कार्य उत्पन्न होते ही हैं, यदि ऐसा कहते हो तो उसके भेद को ही उसका हेतु होना चाहिये, उसके बाद उसी से (सहकारी के भेद से) ही कार्य की उत्पत्ति होने से एक स्वभाव को कारण नहीं मानना चाहिये विपर्यय होने से । अनेक कार्य की उत्पत्ति के समय एक स्वभाव वाले भाव के भी होने से उसको भी हेतु मानने पर अतिप्रसंग हो जायेगा, उस समय होने वाले सभी भाव को हेतुत्व का प्रसंग आने से । अतः न तो एक स्वभाव वाले भाव
1 घटत ।
2 अर्थ क्रियाकारी भावः ।
3 आदिशब्देन कालाकारयोर्ग्रहणं ।
अनेककार्योत्पत्तिबेलायां ।
वस्तुनः ।
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