SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सके स्वभाव सहित साक्षात्कार करने में दक्ष संपूर्ण प्रत्यक्ष की उत्पत्ति होने से, अन्यत्र सा नहीं होने से।।65 ।। मुख्यसंव्यवहाराभ्यां प्रत्यक्षं यनिरूपितम्। देवैस्तस्यात्र संक्षेपान्निर्णयो वर्णितो मया।। मुख्य और व्यवहार के भेद से जो देव (अनन्त वीर्य) के द्वारा प्रत्यक्ष का वर्णन केया गया है, यहां मेरे द्वारा संक्षेप में उसके निर्णय का वर्णन किया गया है। इति श्रीमद्वादिराजसूरिप्रणीते प्रमाणनिर्णये प्रत्यक्षनिर्णयः ।। इस प्रकार श्रीमदवादिराज सूरि प्रणीत प्रमाण निर्णय ग्रन्थ में प्रत्यक्ष निर्णय प्रकरण ) ) ) समाप्त हआ। संप्रतिपरोक्षस्य प्रमाणनिर्णयः। (अब परोक्ष प्रमाण का निर्णय) तच्च तस्य परोक्षत्वं न सामान्यविषयत्वं, सामान्यस्य निर्विशेषस्य' क्वचिदप्यनवलोकनात्। सविशेषे तु तद्विषयत्वं तु प्रत्यक्षत्वेऽपि। नापि ध्यामलाकारत्वं प्रमाणस्य निराकारस्यैव प्रतिपत्तेः । अत एव तदाकारतयां तत' उत्पत्तिरपि मिथ्याज्ञान एव च तदा तदुत्पत्तिरपि संभवेन्न प्रमाणे। तस्मादंतरंगमलविश्लेषविशेषोदयनिबंधनः कश्चिदस्पष्टत्वापरनामा स्वानुभववेद्यः प्रतिभासविशेष एव तस्य परोक्षत्वं । 66 ।। वह प्रमाण का परोक्षत्व सामान्य विषयत्व नहीं है।विशेष रहित सामान्य का कहीं भी अवलोकन नहीं होने से विशेष सहित सामान्य का विषयत्व प्रत्यक्ष में भी है।अस्पष्ट विषयाकारत्व भी नहीं हैं, निराकार प्रमाण की ही प्रतिपत्ति होने से।अतः विषय से विषयाकारतया उत्पत्ति भी नहीं होती, मिथ्या ज्ञान में ही उसकी उत्पत्ति हो सकेगी, प्रमाण में नहीं अतः अन्तरंग मल के विश्लेष विशेष के उदय के कारण होने वाला कोई अस्पष्टत्व अपर नाम वाला अपने अनुभव से जानने योग्य प्रतिभास विशेष ही प्रमाण का परोक्षत्व है।16611 'यतः विशेषपदार्थसहितसामान्यविषयत्वं भवति। 'अस्पष्टविषयाकारत्वं। 'विषयाकारतया। 'विषयात् । 'न केवलं प्रतिपत्तिरेव।
SR No.090368
Book TitlePramana Nirnay
Original Sutra AuthorVadirajsuri
AuthorSurajmukhi Jain
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy