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४ पैशाची-भाषा-वर्णन ५ चूलिका-पैशाचिक-भाषा-प्रदर्शन ६ अपभ्रंश-भाषा-स्वरूप-विधान ७ प्राकृत आदि भाषाओं में अन्यत्यय" विधान ८ शेष साधनिका में "संस्कृतवत्" का संविधान
३०३ से ३२४ ३२५ से ३२८ ३२९ से ४४६
४४७ ४४८
४७५
५६२
नोट:-(१) आदेश प्राप्त प्राकृत-धातुओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। जो कि क्रम से इस
प्रकार हैं:(१) कुछ 'तत्सम" को कोटि की हैं; (२) कुछ "तद्भव" रूप वाली हैं और (३) कुछ ' देशज" श्रेणी
वाली हैं। (२) मूस प्राकृत-भाषा का नाम ''महाराष्ट्री" प्राकृत है और शेष भाषाएं सहयोगिनी प्राकृत-भाषाएँ कही
जा सकती हैं। (३) जैन-प्रागों की भाषा मूलतः "अर्ध-मागधी' है। परन्तु इसका आधार - महाराष्ट्री-प्राकृत" ही है।