SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ ] 4000564 * प्राकृत व्याकरण * न्याम् संस्कृत सप्तम्यन्त एक वचन का रूप है । इसके प्राकृत रूप घेणू घेणूबा घेणूह और घे होते हैं। इन रूपों की साधानका उपरोक्त रीति से एवं सूत्र संख्या ३-२६ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में क्रम से 'अ आ इ ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'वेणू, वेणूभा, घेणूइ और वे सिद्ध हो जाते हैं। 'क' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११६ में की गई है। '' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-७७ में की गई है । 'ठि' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३-१६ में की गई है। Fear संस्कृत तृतीयान्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बहूअ, बहूश्रा, वहूर और बहूए होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१८७ से मूल संस्कृत रूप 'वधू' में स्थित 'धू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३- २६ से संस्कृतीय तृतीया विभक्ति के एक वचन में प्राप्तव्य प्रस्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ-श्रा-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'वहू, बहूआ, बहू और बट्टए सिदूध हो जाते हैं । वध्याः संस्कृत षष्ठयन्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बहू - बहुश्रा, बहू और बहूए होते हैं इनमें 'बहू' रूप की प्राप्ति उपरोक्त रीति से एवं ३ - २६ से संस्कृतीय षष्ठयन्त एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ आ इ.ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप षहू, बहूआ, यहूद और बहूए सिद्ध हो जाते हैं । वध्यास संस्कृत सप्तम्यन्त एक वचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप बहुश्र, बहूश्रा, बहूइ और बहूए होते हैं। इन रूपों की साधनिका उपरोक्त रीति से और ३-२६ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'डि' के स्थान पर प्राकृत में कम से ' श्रइए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप वहूभ, वहूआ, धड़ और बहूए सिद्ध हो जाते हैं । 'क' रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-११६ में की गई है। भवनम् संस्कृत रूप है | इसको प्राकृत रूप मवणं होता है। इसमें सूत्र संख्या १२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्तिः ३०२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में संस्कृती य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर 'मू' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर भवणं रूप सिदूध हो जाता है। 'ठि' : - रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१६ में की गई है। मुग्धायाः - संस्कृत पञ्चम्यन्त एक बचन रूप है। इसके प्राकृत रूप मुखाम, मुदाइ, मुखाए, मुद्धोओ, मुद्धाउ और मुद्धाहिन्तो होते हैं। इनमें मुद्धा रूप तक की सिद्धि इसी सूत्र में उपरोक्तवतं ;
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy