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________________ [ ३३ ] पञ्चलु वि. चञ्चलन) चपल, चंचल १८ चिघडा सक. (आरोहनि । चढ़ता है, २०६, ४१० ।। चिरणा सक. (चिनोति) इकट्ठा करता है, ०३८, चडिज वि.क, भू आरूढ़। चढ़ा हुआ, ३३१ । २४।। चरित्रा वि. (आरुढ़ा:) चढ़े हुए, चुइ सक, (चिनोति) इकट्ठा करता है, २३८ । चडक पु.न. दे. (चटारकार:) चटकार:घटका,थप्पड - " चिणिज्जइ सक. {चीयते) इकट्ठा किया जाता है, का शब्द, ४०६ । २४१, २४३ ।। चष्ठाहुँ सा. (आरोहामः) हम चढ़ने हैं, ४३९ । " चिम्मद सक. (चीरते, इकट्ठा किया जाता है, सक. (भुक्त) यह खाता है। १०। सक. मृदनाति बह मर्दन करता है, ममलता " चिणिहि गक, (चिणिष्यति) इकट्ठा करेगा, २४३ । '' चिभिमहिइ मक. (वियिष्यते) इकट्ठा किया जावेगा, सक, (पिंशति) वह पीसता है, २४३. चदुरिके स्त्रो (चतुरिके) हे चतुरिके ! दासो, २८१ । . " चिबइ सक, (चीयते) इकट्टा किया जाता है, घलिके स्त्री. (चतुरिके) हे दासी) चतुरिके, ३०२।। २४२, २४३ । " चिबिहिद सक. (चीयिष्यते) इकट्ठा किया जायगा चन्दमाएँ स्त्री. (पन्द्रिकया) चाँदनी से; चमदद सक. (मुक्त) खाता है, " उक्षिणइ सक. (उच्चिनोति) वह सोड़ कर) इकट्ठा चम्पय पु. (चम्पक वृक्ष विशेष, चम्पा का पेड़,४४४। चम्पावराणी स्त्री. वि. (चम्पकवर्णी) चम्पा के फूल के रंग- | करता है, २४ । वाली; ३३०। " उच्चेइ सक. (उच्चिनोनि) वह तोड़कर इकट्टा करता है, २४३। चपिज्जई सक. (आक्रम्यते दवा ली जाती है ३९५ । | है ३९५ । | चिइच्छइ सक. (चिवित्पति) वह दवा करता है,२४० । चथइ सक. त्यजति) छोड़ता है, ५ | चिचडचिञ्चह चिकिचल सक. (मण्डयति वह " घय सक, त्यज) छोड़, त्याग, ४२२ । " घएज्ज सक (स्यजे छोड़ दे, छोड़ देना चाहिये,४१८। चिन्त विभूषित करता हैं, ११५ । " चएप्पिणु है कृ. (त्यस्तु) छोड़ने के लिये, ४४१ ।।" चिन्ता सक. (चिन्तपति) सोचता है, ४२२ । " चत्त क. भू. कृ. (त्यक्त्त छोड़ दिया है.३८३,३४५। " चिन्तेदि सक विनयति) सोचता २६५ । " चयइ सक. (शक्नोति) वह समर्थ होता है, ८६ । | " चिन्तयन्तो सक. (चिन्तयत् सोचता हुआ, ३२२ । परि शक. (चर) सा, खाजो, ३८७। " चिन्तयमाणीक. चिमतपती सोबती हुई, ३१०॥ चलइ अक. (चलति) चलता है, ३३१ । । " चिन्तन्ताहं व. कृ. (चिन्तमानानां । सोचते हुओं का, चलण न. (चरण) पर, पांव, ३६२। चलदि अक. (चललि) चलता है, २८३ । " चिन्तिनइ सम. (चिन्त्यते) सोचा जाता है, ३१६, चलन न (चरण) पांव पैर, ४१०। घलेहिं वि. (चलाभ्याम् चंचलों से. ४२२।। " चिन्तितं क. कृ (चिन्तित) सोचा हुआ, ३२० । यह अक. (चलति) चलता है २३१॥ पु. जीमूतः) मेष, वर्षा, वादन, ३२५ । चवह सक. (कथयति) वह कहता है. चुकह सक. (अश्यते भ्रष्ट हुआ जाता है चूकता है, चवह अक (च्यवति) वह मरता है, १७७. चवेड स्त्री. (चपेटा) तमात्रा, थप्पड़, ४०६ । 'चुणइ सक. (चिनोति) इकट्टा करता है, २३८ । चास पु. (त्यागः) त्याग, प्रत्याख्यान, ३९६ । | चुरापोहोइ अक. (चूर्णी भवति । वह चूर-चूर टुकड़े होता चारहडी स्त्री (च प्रारमटी) शीर्म-वृत्ति, सैनिक वृत्ति, है, ३९५, ४३० । ३६६ । 'चुम्बइ सक. (घुम्जति) वह चुम्बन करता है . २३९ । ३९९ । ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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