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________________ ス * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * के रूप में निर्मित धनुष को उठाया । सर्व प्रथम उसने क्षण भर के लिये उसकी अपने शिर पर आभूषण प्रस्थापित किया; तत्पश्चात् रति के कण्ठ में क्षण भर के लिये उसको लटकाये रक्खा और अन्त में शंकर के गले में पड़ी हुई मुण्ड-माला पर क्षण भर के लिये उसको स्थापना की ऐसे कामदेव के पुष्पों से बने हुए धनुष को तुम नमस्कार करो ||१|| ४-४४६ ॥ [ ५६ ] → व्यत्ययश्च ॥ ४-४४७ ॥ आकुखादिमापालचणानां व्यत्ययश्च मवति । यथा मागच्यां तिष्ठश्चिष्ठ' इत्युक्तं तथा प्राकृत पैशाची - शौरसेनाध्वपि भवति । चिष्ठदि । अपभ्रंशे रंकस्यावो वा लुगुको मागध्यामपि भवति । शद माग्गुश - मंश- भालके कुम्भ राह त्र-वशाहे शंचिदे इत्याद्यन्यदपि दृष्टव्यम् । न केवलं भाषालचणानां त्याद्यादेशानामपि व्यत्ययो भवति । ये वर्तमाने काले प्रसिद्धास्ते भूपि भवन्ति । अह पेच्छ रहु-तयश्री || अथ प्रेक्षांचक्र े इत्यर्थः । श्राभासह रयणीयरे । श्राबभाषे रचनीचरानित्यर्थः || भूते प्रसिद्धा वर्तमानपि । सोही एस एठो | शृणोत्येष वण्ठ इत्यर्थः ।। अर्थ:- प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश भाषाओं में व्याकरण सम्बन्धी जो नियम उपनियम आदि विधि-विधान हैं, उनका परस्पर में व्यत्यय अर्थात् लटपुलट पना भी पाया जाता है। जैसे मागधी भाषा में 'तिष्ठ' के स्थान पर सूत्र संख्या ४-२३८ के अनुसार 'विष्ठ' रूप की आदेश प्राप्ति होती है, उसी प्रकार ही 'प्राकृत, पैशाची और शौरसेनी' भाषाओं में भी होता है। जैसे:- तिष्ठति= चिष्ठदि वह बैठता है। अपभ्रंश भाषा में सूत्र संख्या ४-३६८ में ऐसा विधान किया गया है कि अब रूप में रहे हुए रेफ रूप 'वकार व का विकल्प से लोप हो जाता है; यही नियम मागधी भाषा में भी देखा जाता है। भाषाओं से सम्बन्धित यह व्यत्यय केवल नियमोपनियमों में ही नहीं होता है किन्तु काल बोधक प्रत्यर्थो में भी यह व्यत्यय देखा जाता है; तदनुसार वर्तमानकालवाचक प्रत्ययों के सदभाव में भूतकालवाचक अर्थ सो निकाल लिया जाता है और हमी प्रकार से भूतकाल-बोधक प्रत्ययों के सद्भाव में वर्तमानकालवाचक अर्थ मोसम लिया जाता है । जैसे: (१) अथ प्रेशांचक्रे ग्घु-तनयः = श्रह पेच्छ रहुत भो= इसके बाद में ग्धु के लड़के ने देखा । (२) श्राबभाषे रचनीचरान् = श्राभासह रयशोअरे - राक्षसों को कहा। इन उदाहरणों में वर्तमानकाल-वाचक 'इ' प्रत्यय का अस्तित्व है; परन्तु 'अर्थ' भूतकालवाचक कहा गया है; यों काल वाचक व्यत्यय इन भाषाओं में देखा जाता है। भूतकाल का सद्भाव होते हुए भी अर्थ वर्तमानकाल का निकाला जाता है; इस सम्बन्धी शहर यों हैं: - णोति एष पठः सोही एस वण्ठो यह बौना (वामन) सुनता है। इस उदाहरण में 'सोडी' क्रियापद में भूतकालीन प्रत्यय 'ही' की प्राप्ति हुई है; परन्तु अर्थ वर्तमानकालीन ही लिया गया है। यो काल-बोधक प्रत्ययों में भी व्यत्यय-स्थिति इन भाषाओं में देखी जाती है || ४-५४७ ||
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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