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________________ * प्रयोदय हिन्दा व्याख्या सहित # [ ५८५ ] क्रम से असाधारण कार्यों का करने के लिये ) भगवान् शान्तिनाथ प्रभु के शिवाय दूसरा कौन इस विश्व में समर्थ हो सकता है। इस गाया में हेत्वर्थ कृान्त के अर्थ में प्रयुक्त किये जाने वाले शेष चार प्रस्थयों को उपयोगिता बतलाई है; जो दृष्टान्त रूप से ऊपर लिखे जा चुके हैं ॥। ४-४४१ ।। गमेरेपिवेप्योरेलु वा ॥ ४-४४२ ॥ अपभ्रंशे गमेर्धातोः परयोरेपिणु एप्पि इत्यादेशयो रंकारस्य लुग् भवन्ति वा । गम्प घाणारसिहि, नर वह उज्जेणिहिं गम् ॥ मुआ परावहिं परम-पड, दिव्वन्तरई म जपि ॥ १ ॥ पचे गङ्ग गमेपि जो मुइ, जो सिव-तित्थ गमेपि ॥ कीलदि तिदसावास भउ, सो जम- लोउ जिणेवि || २ || ▾ 'ए अर्थः--अपभ्रंश भाषा में 'जाना, गमन करना' अर्थक धातु 'गम्' में संबंध - दन्त अर्थक प्रत्यय और को संत्ययों में स्थित आदि स्वर 'एकार' का विकल्प से लोग हो जाता है। जैसे:- गत्वा = गप्पगु अथवा गमेध्णुि और गम्पि अथवा गमेपि =: = आकर के । इन्हीं चारों पदों का प्रयोग वृत्ति में दी गई गाथाओं में किया गया है; जिनका अनुवाद इस प्रकार से है: संस्कृत: गत्वा वाराणसीं नराः अथ उज्जयिनीं गत्वा ॥ मृताः प्राप्नुवन्ति परमं पदं दिव्यान्तराणि मा जन्म ॥१॥ - के हिन्दी:- मनुष्य सर्व प्रथम बनारस तोर्थ को जाकर के और तलश्चात् उब्जायनी तीर्थ को जाकर मृत्यु प्राप्त करने पर सर्वोत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं; इसलिये अन्य पवित्र तीर्थो की बात मत कर । इस गाथा में एपिशु और एपि प्रत्ययों में अवस्थित आदि स्वर 'एकार' का लीप स्वरूप प्रदर्शित किया गया है ||१|| संस्कृतः — गङ्गां गत्वा यः म्रियते यः शिवतीर्थं गत्वा ॥ क्रीडति त्रिदशावासगतः, स यमलोकं जिल्ला ||२|| हिन्दी:- जो पवित्र गंगा नदी के स्थान पर जाकर मृत्यु प्राप्त करता है अथवा जो शिवतीर्थबनारस में जाकर मृत्यु प्राप्त करता है; वह यमलोक को जीनकर इन्द्रादि देवताओं के रहने के स्थान को प्राप्त करता हुआ परम सुख का अनुभव करता है। इस गाथा में 'गमेपिशु और गमेपि' पदों में रहे हुए 'एपि तथा चि' प्रत्ययों में आदि 'पुकार' स्वर का अस्तित्व ज्यों का त्यों व्यक्त किया गया है। य मैं कल्पिक स्थिति को समझ लेना चाहिये ।। ४-४४२ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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