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________________ हुहरु घुरघादय शब्द- चेष्टानुकरणयोः ॥ ४-४२३ ॥ आदि ग्रहणात् । * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * इत्यादि || 0644246040066660000 अपभ्रंशे दुदुर्वादयः शब्दानुकरणे घुग्वादयश्चेष्टानुकरणे यथासंख्यं प्रयोक्तव्याः ॥ महं जाणितं बुड्डोस हउं पेम्न द्रहि हुहुहति ॥ नवरि चिन्ति संपडिय विधिय नाव झति ॥ १ ॥ - लनड नज कसरकहिं पिज्जइ नउ घुटेहिं || एम्वइ होइ सुद्द च्छडी पिएं दिट्ठे नयणेहिं ॥२॥ भादि ग्रहणात् ॥ अज्जवि नाहु महुत्रि घरि सिद्धत्था वन्दे ॥ वाजि विरहु गवकहिं मकडु - घुग्धिउ देइ ॥ ३॥ सिरि जर खण्डी लोधडी गलि मणियडा न दीस || तो वि गोड्डा कराविया मुदर उदु-बईस | ४ || [ ५६५ ] WOOL संस्कृत::- मया ज्ञातं मंदयामि श्रहं प्रेम-हुरे हुहरु शब्दं कृत्वा ॥ केवलं अचिन्तिता संपतिता विप्रिय-नौः झटिति ॥ १ ॥ इत्यादि ॥ अर्थः- अपभ्रंश भाषा में शब्दों के अनुकरण करने में अर्थात् ध्यति अथवा आवाज की नकल करने में '' इत्यादि ऐसे शब्द विशेष बोले जाते हैं और चेष्टा के अनुकरण करने में अर्थात् प्रवृत्ति अथवा कार्य की नकल करने में 'घुग्ध' इत्यादि ऐसे शब्द विशेष का उच्चारण किया जाता है। उदाहरण के रूप में दो गई गाथाओं का अनुवाद क्रत से यों है: हिन्दी:- मैंने सोचा था अथवा मैंने समझा था कि 'हुरु-हु' शब्द करके मैं प्रेम रूपी (प्रियतम - संयोग रूपी ) तालाब में खूब गइरो डूबकी लगाऊगी; परन्तु ( दुर्भाग्य से ) बिना बिचारे ही अचानक ही ( पति के ) वियोग रूपी नौका झट से ( जल्दी से ) आ समुपस्थित हुई। 'वृत्ति में आदि' शब्द ग्रहण किया गया है। इससे अन्य शब्दों की अनुकरण करने रूप अनुवृति की परिपाटी भी समझ लेना चाहिये, जैसे कि गाथा-संख्या द्वितीय में 'कसरक' शब्द एवं 'घुट्' शब्द को प्रण करके इस बात की पुष्टि की गई है। उक्त गाथा का अनुवाद यों हैः
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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