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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ ५५३ ] ********* संस्कृत: अथवा न सुवंशानामेष दोषः - श्रह वह न सुबंसदं एह खोद्धि = अथवा श्रेष्ठ वंश वालों का-उत्तम खानवान वालों का यह अपराध नहीं है । इस गाथा चरण में 'अथवा ' के स्थान पर 'हव' रूप की देश-प्राप्ति बतलाई है। 'प्राय' रूप से विधान का अधिकार होने के कारण से ' अथवा ' के स्थान पर अपयश भाषा में अनेक स्थानों पर 'वा' रूप भी देखा जाता है। इस सम्बन्धी उदाहरण गाथा - संख्या दो में यों हैः संस्कृत: - यायते ( गम्यते ) तस्मिन् देशे, लभ्यते प्रियस्य प्रमाणाम् || यदि आगच्छति तदा आनीयते, अथवा तत्रैव निर्वाणम् ||२|| हिन्दी:- मैं उस देश में जाती हूँ; जहाँ पर कि प्रियतम पतिदेव की प्राप्ति के चिह्न पाये जाते हों । यदि वह आता है तो उसको यहाँ पर लाया जायगा अथवा नहीं आवेगा तो मैं वहीं पर ही अपने प्राण दे दूँगी । इस गाथा में 'अथवा ' की जगह पर 'ब्रह्मा' रूप लिखा हुआ है संस्कृतः - दिवसे दिवसे ( दिवा दिवा ) गङ्गा स्नानम् = दिवि-दिवि-गंगा-हाणु प्रत्येक दिन गंगा स्नान ( करने जितना पुण्य प्राप्त होता है) इस गाथा-पद में 'दिवा' के स्थान पर 'दिवे = दिवि' रूप का उल्लेख किया गया है। संस्कृत: - यत् प्रवसता सह न गता न मृता वियोगेन तस्य ॥ लज्ज्यते संदेशान् ददतीभिः (अस्माभिः) सुभग जनस्य || ३ || 1 हिन्दी:1:- जब मेरे पतिदेव विदेश यात्रा पर गये तब मैं उनके साथ में भी नहीं गई और उनके वियोग में भी विरह जनि दुख से मृत्यु को भी नहीं प्राप्त हुई मृत्यु भी नहीं आई, ऐसी स्थिति में उनको मंदेश भेजने में मुझे लज्जा आती हैं। इस गाथा में 'सह' अध्यय के स्थान पर आदेश प्राप्त 'सई' श्रव्यय का प्रयाग प्रदर्शित किया गया है || ३|| संस्कृतः --- इतः मेघाः पिवन्ति जलं, इतः वडवानलः आवर्तते ॥ स्व गमीरिमाणं सागरस्य एकाषि कणिका नहि अपभ्रश्यते ॥४॥ हिन्दी: - समुद्र के जल को एक ओर तो ऊपर से मेघ बादल पीते हैं और दूसरी ओर अन्दर से समुद्राग्नि उसको अपने उदरस्य करती जाती है । यों समुद्र की गंभीरता को देखा कि इसकी एक बूंद भी व्यथ में नहीं जाती है। इस गाथा में 'नहि' अव्यय के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'नाहि' अव्यय रूप की रूपा की गई है || ४ ४-४१६ ।। पश्चादेवमेवै वेदानी - प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्बई जि एवहि पञ्चलिउ एतहे ॥४-४२० ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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