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________________ [ ५४८] * प्राकृत व्याकरणा संस्कृत-मम कान्तस्य गोष्ठ स्थितस्थ, कृतः कुटीरकाणि ज्वलन्ति ॥ श्रथ रिपुरुधिरंण भाद्रगति अथ आत्मना, न भ्रान्तिः ॥१॥ हिन्दी:--'अपने भवन में रहते हुए मेरे प्रियतम पति देव की उपस्थिति में झोंपड़ियों कैसे-कहाँ से-किम कारण से। अग्नि द्वारा जल मकना है ? क्योंकि ऐसा होने पर) उन मोलियों की यातो वह (पति देव) शत्रुनों के रक्त में उनको बुझा देगा अथा अपने खुद के (लड़ते हुए शहर में से निकल हुए) खून से उन्हें बुझा देगा, इमें मोह करन जैनो काई बात नहीं है। इस गाथा में 'अतः' के स्थान पर आदेश प्राप्त रूप '5' का प्रयोग किया गया है।।१। (२) धूमः कुनः उस्थिन:- धूमु कहन्तिह उदि अउ -धूओं कहाँ म-(किम कारण से उठा हुआ है ? इम गाथा चरण में 'कुन:' के स्थान पर प्रदेश प्राव द्वि-य ५ 'कहन्ति का उपयोग किया गया ततस्तदोस्तोः ॥ ४-४१७ ।। अपभ्रंशे ततम् तदा इत्येतयोस्तो इत्यादेशो भवति । जइ भग्गा पारकडा, तो सहि ! मज्झ पिएण ॥ अह भग्गा अम्हह, तहातो तें मारिअडेण ॥१॥ अर्थ:-'यदि यमा है तो अथवा उस कारण से है तो' इम अर्थ में संस्कृत भाषा में 'ततः' अध्यय का प्रयोग किया जाता है। इपी 'तत:' अव्यय के स्थान पर अपभ्रंश भाषा मे 'तो' अव्यय रूप को आदेश प्राप्ति होती है । इसी प्रकार मे तबतो' प्रर्थ में संस्कृत भाषा में तहा' अश्यय प्रयुक्त किया जाता है। इस तदा' अव्यय के स्थान पर भी पन श भ षा में 'नो' अश्यय रूप की ही आदेश प्राप्ति समझनी चाहिय । यो 'तनः' और 'तना दानों को अध्ययों का स्थान पर एक जैसे हा 'तो' रूप की आदेश प्राप्ति होता हुई देखी जाती है । जैस:- ततस्तदा वा जिनागमान द्योतय तो जिण-बागम जोइ = यदि वैसा है तो अथवा तबता जैन-शास्त्रों को देख । इम उदाहरण में 'ततः और सदा के स्थान पर एक ही अध्यय रूप 'तो' को प्रापणा की गई है । गाथा का भाषान्तर इस प्रकार है:संस्कृत:-यदि भग्नाः परकीयाः, ततः सखि ! मम प्रियेण ॥ श्रथ भग्नाः अस्मदीयाः, तदा तेन मारितेन ॥१॥ हिन्दी:-ई माख ! यति शत्रु-गण मत्यु को प्राप्त हो गये हैं। अथका (रण-क्षेत्र को छोड़कर के) भाग गये हैं तr (यह सब विजय) मेरे प्रियतम के कारण से (हो है)। अथवा यी अपने पक्ष के वीर पुरुष रण क्षेत्र को छोड़ करके भाग ख हुए है सा (भी समझो कि) मेरे प्रियतम के वीर गति प्राप्त करने
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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