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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ ५३३ ] भगा पारकडा तो सहि ! मज्भु प्रियंग हे सखि ! यदि शत्रु पक्ष के लवैये ( रण-क्षेत्र को छोड़कर ) भाग खड़े हुए हैं तो मेरे पति की वीरता के कारण ) में ( ही ) ऐसा हुआ है। इस दृष्टान्त में 'प्रिये ' के स्थान पर 'त्रिवेण' पद का ही उल्लेख कर के यह समझाया है कि रेफ रूप 'रकार' का लोप कहीं पर होता है और कहीं पर नहीं भी होता है। यों यह स्थिति उभय-पक्षीय होकर वैकल्पिक हैं ।। ४-३६८ ॥ $4000 भूतोपि क्वचित् ॥ ४-३६६ ॥ अपभ्रंशे कचिदविद्यमानो पि रेफो भवति ॥ वासु महारिसि ऍउ भगइ जइ सुह-मत्थु पमाणु ॥ माय चलनवन्ताहं दिवि दिवि गङ्गा व्हा ॥ १ ॥ कचिदितिकिम् । वासेण वि भारत - खम्भि बद्ध || अर्थः कृतकेयाद रेफ रूप 'रकार' नहीं है तो मा अपभ्रंश भाषा में उस पद का रूपान्तर करने पर उस पद में रेफ-रूप 'रकार' की श्रागम प्राप्ति कभी कमो जैसे:- व्यासः प्रासु - व्यास नामक ऋषि-विशेष। पूरी गाथा का रूपान्तर यों है: - जाया करती हैं। संस्कृतः — व्यास-- महर्षिः एतद् भगति यदि श्रुति शास्त्रं प्रमाणम् ॥ 7 मातृणां चरणौ नमतां दिवसे दिवसे गङ्गा स्नानम् ॥ १ ॥ हिन्दी ः— महाभारत के निर्माता व्यास नामक बड़े ऋषि फरमाते हैं कि यदि वेद और शास्त्र सच्चे हैं याते प्रमाण रूप है तो यह बात सच हैं जो विनीत आत्माएं प्रतिदिन प्रात:काल में अपनी पूजनीय माताओं के चरणों में श्रद्धा पूर्वक नमस्कार प्रणाम करते हैं तो उन विनीत महापुरुषों को बिना गंगा स्नान किये भो 'गङ्गा में स्नान करने से उत्पन्न होने वाले पुण्य' जितने पुण्य की प्राप्ति होती है ।। १ । प्रश्नः --- क्वचित् श्रर्थात् कभी कभी ही रेफ रूप रकार' की श्रागम राप्ति होती है; ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर:- अनेक पड़ों में कभी तो रेफ रूप 'रकार' की श्रागम-प्राप्ति हो जाती है और कभी नहीं भी होती है इमलिये कचित् श्रभ्यय का उपयोग किया गया है। जैसे:- म्यासेनापि भारत स्तम्भे बद्धम् =वासेण त्रि भारह खम्भ बढन्यास के द्वारा भी भारत रूपी स्तम्भ में बांधा गया है - कहा गया है । इस उदाहरण में 'वासेा' पद में रेफ-रूप 'रकार' का आगम नहीं हुआ है । (२) व्याकरणम् = बागरण और बागरण = व्याकरण शास्त्र । इस तरह से रेफ-रूप 'रकार' को श्रागम स्थिति को जानना चाहिये ।। ४-३६६ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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